lalittripathi@rediffmail.com
Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-164

92Views

जय श्री राधे कृष्ण …….

अवगुन एक मोर मैं माना, बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना, नाथ सो नयनन्हि को अपराधा, निसरत प्रान करहिं हठि बाधा ।।

भावार्थ:- हाँ, एक दोष मैं अपना अवश्य मानती हूँ कि आपका वियोग होते ही मेरे प्राण नहीं चले गये । किन्तु हे नाथ! यह तो नेत्रों का अपराध है, जो प्राणों के निकलने में हठ पूर्वक बाधा देते हैं…..!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

Leave a Reply