जय श्री राधे कृष्ण …….
“अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना, दीन बन्धु प्रनतारति हरना, मन क्रम बचन चरन अनुरागी, केहिं अपराध नाथ हौं त्यागी ।।
भावार्थ:- छोटे भाई समेत प्रभु के चरण पकड़ना (और कहना कि) आप दीनबन्धु हैं, शरणागत के दु:खों को हरने वाले हैं और मैं मन, वचन और कर्म से आपके चरणों की अनुरागिणी हूँ । फिर स्वामी (आप) ने मुझे किस अपराध से त्याग दिया ?…….!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
