lalittripathi@rediffmail.com
Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-163

94Views

जय श्री राधे कृष्ण …….

अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना, दीन बन्धु प्रनतारति हरना, मन क्रम बचन चरन अनुरागी, केहिं अपराध नाथ हौं त्यागी ।।

भावार्थ:- छोटे भाई समेत प्रभु के चरण पकड़ना (और कहना कि) आप दीनबन्धु हैं, शरणागत के दु:खों को हरने वाले हैं और मैं मन, वचन और कर्म से आपके चरणों की अनुरागिणी हूँ । फिर स्वामी (आप) ने मुझे किस अपराध से त्याग दिया ?…….!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

Leave a Reply