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मायका और ससुराल

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मायका और ससुराल

“अरे सीमा तुमने मेहंदी नहीं लगाई, इस बार करवा चौथ पर तुम तो कितनी अच्छी मेहंदी लगाती थी….सोसाइटी की मेहंदी प्रतियोगिता तुम ही जीतती थी।” पड़ोस की रीना भाभी ने सीमा को देखते ही कहा…..

“वो भाभी क्या है कि पहले माँ जी किसी भी त्योहार से 10 दिन पहले से शोर मचा देती थीं। मेहंदी वाली बुक कर ले….फिर नहीं मिलेगी….फिर मेहंदी वाली के आने के बाद भी उसे ढेरों हिदायत देती थी कि बारीक मेहंदी लगाइयो….पूरे मोहल्ले में ना हो ऐसी किसी की मेहंदी जैसी मेरी बहू की।” सीमा उदास होकर बोली।

“सास नहीं अब तो क्या जीना छोड़ दोगी या त्योहार मनाना छोड़ दोगी…..मुझे बोल देती जब मेरी मेहंदी वाली आई तभी लगवा देती।” रीना भाभी फिर बोली….बस भाभी मन ही नहीं किया मेरा मेहंदी लगवाने का इस बार!” सीमा बोली……” अजीब हो यार सीमा तुम और तुम्हारा सास प्रेम यहाँ तो सास है तो मुसीबत लगती और तुम सास के ना रहने से इतना दुखी हो!” रीना बोली

“हम्म..चलो भाभी बच्चों को दूध दे दूँ मैं।” सीमा ये बोल वहाँ से चली आई। बच्चों का दूध बनाने में सीमा सोचने लगी माँ थी तो कितना आराम था…त्योहार पर मेहंदी लगी होने पर माँ बच्चों को देख लेती थी..अब तो उन्हें भी खुद देखना..कहीं जाना हो तो बच्चों की फिक्र नहीं..अब सहेलियों से मिले भी महीनों बीत गए।

“बहू वो लाल साड़ी पहनियो तू कल आराम से तैयार होइयो बच्चों को मैं देख लूँगी…और हाँ रात को सोने से पहले मेहंदी पर निम्बू चीनी लगा लियो अच्छा रंग चढ़ेगा।” हर साल माँ की यही हिदायतें होती थी। “माँ दो बच्चों की माँ हूँ मैं भी अब नई नवेली बहु नहीं !” सीमा हंस कर जवाब देती थी……” अरी बच्चे हो गए तो क्या हुआ सजना संवरना तो हर औरत का हक होता और हर औरत को पसंद भी होता!” माँ  हमेशा कहती…

छह महीने पहले माँ को ऐसा बुखार आया की माँ उठी नहीं दुबारा। हर कोशिश की उसने और पति राजन ने कि माँ ठीक हो जाये पर.. होनी को कुछ और ही मंजूर था..पापा का साया तो राजन के सर से बचपन मे ही छिन गया था। अब माँ भी..सीमा की भी माँ नहीं थी पर सास से उसने माँ से ज्यादा प्यार पाया.

“मम्मा..क्या हुआ आप रो क्यो रहे हो।” नन्ही शीना की आवाज़ से वो वर्तमान मे आ गई..देखा उसकी आँख से सच में आँसू निकल आये.

“कुछ नहीं बेटा..आँख मे कुछ गिर गया।” बेटी को सीमा ने बहलाया.

“लाओ मैं फू मार दूँ जैसे दादी मारती थी मेरे।” शीना सीमा की आँख मे फूक मारती बोली.

“बस मेरा बच्चा मम्मा का दर्द तो ठीक हो गया चलो अभी जल्दी से दूध खत्म करो।” ये बोल सीमा वहाँ से हट गई.

“माँ आप नहीं हो तो ये घर, हम सब अधूरे हैं.. देखो आज आपकी बहू’ के हाथ सूने हैं बिन मेहंदी.. अब लाल साड़ी पहनने का भी मन नहीं करता… आप होती तो सब अच्छा लगता…ये सच है की माँ के ना होने से मायका खत्म हो जाता पर मेरा मायका तो भाभी से सलामत है..लेकिन आपके न रहने से मेरा ससुराल जरूर खत्म हो गया।” सीमा सास की तस्वीर के सामने फूट-फूट के रो दी.

सच ही तो है दोस्तों जैसे माँ से मायका वैसे सास से ससुराल।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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