देवी सती ने ली राम जी की परिक्षा
एक बार त्रेतायुग में भोले बाबा अपनी (पहली) पत्नी जगत जननी माता कसती के साथ दक्षिण प्रदेश मे ऋषि अगस्त्य जी के आश्रम गए। एक बार त्रेतायुग माहीं। शंभु गए कुंभज रिषि पाहीं।। संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेश्वर जानी।।
ऋषि अगस्त्य जी ने राम कथा कही जो शिव जी ने प्रेम के साथ सुनी। पर देवी सती ने अज्ञान और अहंकार बस कथा नहीं सुनी। उन्होंने सोचा मैं प्रजापति दक्ष की पुत्री परम विदुषी और त्रिभुवन गुरु महादेव की पत्नी हूँ मुझे किसी पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्य से कथा सुनने की क्या आवश्यकता है। गोस्वामी जी को यह अच्छा नहीं लगा और उन्होंने माता सती से जगतजननी की सारी उपाधि हटा दी। बाबा बोले-मुनि सन विदा मांगि त्रिपुरारी। चले भवन संग दच्छकुमारी।।
आते समय गोस्वामी जी ने देवी सती को जगत जननी और भवानी की संज्ञा दी पर अभिमान बस कथा ना सुनने के कारण जाते समय उन्हें दक्ष कुमारी (जो अहंकार का प्रतीक है) कहा। जाते समय शिव जी ने मार्ग मे राम जी को देखा जो सीता जी को ढूँढ़ रहे थे। उन्होंने दूर से ही प्रणाम किया जय सच्चिदानंद जगत को पावन करने वाले प्रभु आपकी जय हो। माता सती ने शिव जी से पूँछा हे प्रभु आप किसे प्रणाम कर रहे हैं। हे देवी यह मेरे इष्ट देव नारायण हैं जो इस समय श्री राम के रुप में पृथ्वी पर मानव अवतार लिया है। तब देवी सती ने शिव जी से एक प्रश्न किया-ब्रम्ह जो व्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद। सो कि देह धरि होइ नर जाहिं न जानत वेद।।
अर्थात, जो ब्रह्म सर्वत्र व्याप्त है जो माया से परे है अजन्मा है जो इच्छा रहित और भेद रहित है वेद भी जिसका पार नहीं पा सकते क्या वह (ब्रह्म) मनुष्य शरीर धारण कर सकते हैं। और क्यों धारण करते हैं। शिव जी ने मन ही मन कहा देवी इस प्रश्न का उत्तर आपको इस जन्म में नहीं मिलेगा। इस भेद को जानने के लिए आपको फिर से जन्म लेना होगा।
जो ज्ञानी जन होते हैं वो उचित समय और उचित पात्र को जानकर ही किसी रहस्य को बताते हैं। शिव जी जान गए अज्ञान और अहंकार से ग्रसित देवी सती इस रहस्य को नहीं समझ सकती। ये तो सब जानते हैं सती ने राम जी की परिक्षा ली शिव जी ने उनका त्याग किया और उन्होंने दक्ष के यज्ञ में अपनी आहुति दे दी। फिर हिमवान के यहाँ उनका देवी पार्वती के रूप में अवतार हुआ। उन्होंने कठोर तपस्या से शिव जी को पति रूप में प्राप्त किया।
एक बार शिव जी कैलाश पर वट वृक्ष के नीचे बैठे थे। पार्वती जी ने अच्छा अवसर जानकर शिव जी के पास गयी और उनसे राम कथा सुनाने का आग्रह किया। शिव जी ने कहा देवी पिछली बार आपने कथा तो सुनी नहीं जिसके कारण आपको अपना प्राण त्यागना पड़ा ! क्या इस बार आप सुन पाएँगी। माता पार्वती ने कहा-तब कर अस बिमोह अब नाहीं। राम कथा पर रुचि मन माहीं।।
शिव जी प्रसन्न होकर कथा सुनाने लगे और सुनाते सुनाते जब राम जन्म का प्रसंग आया तो शिव जी ने सही समय जानकर पार्वती जी से कहा देवी ! आप ने जो पिछले जन्म में प्रश्न किया था उसका उत्तर देने का समय आ गया है। सुनिए ! गोस्वामी जी लिखते हैं- शिव जी बोले देवी देखो-व्यापक ब्रम्ह निरंजन निर्गुण विगत विनोद। सो आज प्रेम भगति बस कौशल्या की गोद।।
हे देवी जो ब्रम्ह है व्यापक है गुणों से परे है सांसारिक अनुभूतियों से परे है वह आज केवल प्रेम और भक्ति के कारण माता कौशल्या की गोद में खेल रहे हैं। हे देवी उन्हें प्रणाम करो वो ही मेरे इष्ट देव हैं। शिव जी कहते हैं-सोइ मम इष्टदेव रघुबीरा। सेवत जाहिं सदा मुनि धीरा।। इष्ट देव मम बालक रामा। शोभा शील रूप गुण धामा।।
जय श्रीराम
