lalittripathi@rediffmail.com
Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-135

77Views

जय श्री राधे कृष्ण …….

रहा न नगर बसन घृत तेला, बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला, कौतुक कँह आए पुरबासी, मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी ।।

भावार्थ:- (पूँछ के लपेटने में इतना कपड़ा और घी – तेल लगा कि) नगर में कपड़ा, घी और तेल नहीं रह गया । हनुमान जी ने ऐसा खेल किया कि पूँछ बढ़ गयी (लंबी हो गयी) । नगर वासी लोग तमाशा देखने आए । वे हनुमान जी (की बढी पूँछ) को पैर से ठोकर मारते हैं और उनकी बहुत हंसी करते हैं…. ।।

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

Leave a Reply