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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-125

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जय श्री राधे कृष्ण …….

राम बिमुख संपति प्रभुताई, जाइ रही पाई बिनु पाई, सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं, बरषि गए पुनि तबहिं सुखाहीं ।।

भावार्थ:- राम विमुख पुरुष की संपत्ति और प्रभुता रही हुईं भी चली जाती है और पाना न पाने के समान है। जिन नदियों के मूल में कोई जल श्रोत नहीं है (अर्थात जिन्हें केवल बरसात का ही आसरा है) वे वर्षा बीत जाने पर फिर तुरंत ही सूख जाती हैं….!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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