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भय

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भय

आदरणीय हमारे बंधुओं जी अधिकतर हम अपने घर की सबसे ऊपर छत पर खड़े हो जाते है और नीचे देखते है हमे भय लगता है क्यों जी सही कहा हमने कैसा भय ?…..जैसे हमारे मकान की जड़े यानि नींव ना हिल जाये हमारा पतन होने का भय और भी कई तरह के भय और इसी वजह से हम उच्चाई का सम्पूर्ण आनन्द नहीं ले पाते…. किन्तु क्या हमने किसी वृक्ष की डाली पर बैठे पक्षी को देखा है उस डाली के हिल जाने से उस पक्षी को गिरने का डर नहीं लगता क्यों कियोकी उसे भरोसा होता है अपने पंखों पर….

इसी प्रकार हम में से अधिकतर लोग किसी ना किसी की सहायता से उच्चाई पर पहुँच जाते है किसी कि सहायता से सफलता प्राप्त करते है किन्तु इस सफलता का आनन्द केवल वही प्राप्त कर सकते है जिन्हें गिरने का भय ना हो……इसलिये किसी कि सहायता पर नहीं स्वय के सामर्थ पर विश्वास कीजिये कियोकी भरोसा सभी पर कीजिये लेकिन सावधानी के साथ क्योंकि कभी कभी हमारे ख़ुद के दात भी हमारी जीभ को काट लेते है अच्छे लोगो की परीक्षा कभी मत लीजिये क्योंकि वो पारे के होते है हम उन पर चोट करते है तो वो टूटते नहीं फिसलकर हमारी ज़िन्दगी से निकल जाते है

जी बाक़ी आप सभी समझदार है जी कोई गलती हो गई हो तो माफ़ कर देना जी कुछ अच्छा लगे याद करते रहेगा जी इसलिये सभी के साथ प्रेम पूर्वक मिलकर रहिए।जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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