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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-113

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जय श्री राधे कृष्ण …….

मारे निशिचर केहिं अपराधा, कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा, सुनु रावन ब्रह्मांड निकाया, पाइ जासु बल बिरचति माया…..।।

भावार्थ:– तूने किस अपराध से राक्षसों को मारा ? रे मूर्ख! बता, क्या तुझे प्राण जाने का भय नहीं है ? (हनुमान जी ने कहा) हे रावण! सुन, जिन का बल पा कर, माया सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड के समूहों की रचना करती है…….!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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