महादेव के पिनाक धनुष की कथा
भगवान श्री राम ने सीता जी के स्वयंवर में गुरु विश्वामित्र जी की आज्ञा से शिवजी का कठोर धनुष तोड़ कर सीता जी से विवाह किया था। लेकिन शिवजी का वह धनुष किसने और किससे बनाया था तथा वह शिव धनुष महाराज जनक जी केपास कैसे पहुंचा, इस रहस्य को बहुत कम लोग जानते हैं। पिनाक धनुष की बड़ी विचित्र कथा है। कहते हैं एक बार घोर कानन के अंदर कण्व मुनि बड़ी भारी तपस्या कर रहे थे। तपस्या करते करते समाधिस्थ होने के कारण उन्हें भान ही नहीं रहा कि उनका शरीर दीमक के द्वारा बाँबी बना दिया गया। उस मिट्टी के ढ़ेर पर ही एक सुंदर बाँस उग आया। कण्व जी की तपस्या जब पूर्ण हुई, तब ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उन्होंने अपने अमोघ जल के द्वारा कण्व जी की काया को सुंदर बना दिया।
ब्रह्मा जी ने उन्हें अनेक वरदान प्रदान किए और जब ब्रह्मा जी जाने लगे, तब उन्हें ध्यान आया कि कण्व की मूर्धा पर उगी हुई बाँस कोई साधारण नहीं हो सकती। इसलिए इसका सद्उपयोग किया जाना चाहिए। यह विचारकर ब्रह्मा जी ने वह बाँस काटकर विश्वकर्मा जी को दे दिया। विश्वकर्मा जी ने उससे दो दिव्य धनुष बनाये, जिनमें एक जिसका नाम सारंग था, उन्होंने भगवान विष्णुजी को और एक जिसका नाम पिनाक था,शिव जी को समर्पित कर दिया।
पिनाक धनुष धारण करने के कारण ही शिवजी को पिनाकी कहा जाता है। शिवजी ने जिस पिनाक धनुष को धारण किया था, उसकी एक टंकार से बादल फट जाते थे और पृथ्वी डगमगा जाती थी। ऐसा लगता था मानों कोई भयंकर भूकंप आ गया हो। यह असाधारण धनुष अत्यंत ही शक्तिशाली था। इसी के मात्र एक ही तीर से भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया था। देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद यह धनुष देवताओं को सौंप दिया। देवताओं ने इस धनुष को महाराजा जनक जी के पूर्वज देवरात को दे दिया।
महाराजा जनक जी के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। शिवजी का वह धनुष उन्हीं की धरोहर स्वरूप जनक जी के पास सुरक्षित था। इस शिव-धनुष को उठाने की क्षमता कोई नहीं रखता था। एक बार देवी सीता जी ने इस धनुष को उठा दिया था, जिससे प्रभावित हो कर जनक जी ने सोचा कि यह कोई साधारण कन्या नहीं है। अत: जो भी इससे विवाह करेगा, वह भी साधारण पुरुष नहीं होना चाहिए। इसी लिए ही जनक जी ने सीता जी के स्वयंवर का आयोजन किया था और यह शर्त रखी थी कि जो कोई भी इस शिव-धनुष को उठाकर, तोड़ेंगा, सीता जी उसी से विवाह करेंगीं । उस सभा में भगवान श्री राम ने शिव-धनुष तोड़ कर सीता जी से विवाह किया था। जब शिवजी का वह कठोर धनुष टूटा तो उसकी ध्वनि सुनकर परशुराम जी इसलिए क्रोधित होकर जनक जी की सभा में आए थे क्योंकि भगवान शंकर, परशुराम जी के आराध्य देव हैं।
पिनाक धनुष की एक और कहानी है, फिर कभी रात्रि की कहानी मे…..
जय श्रीराम

Jai Bhole Nath
Thanks Adesh Sir…. Har Har Mahadev
जय भोले… जय श्री राम 🙏🙏
har Har mahadev