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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-112

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जय श्री राधे कृष्ण …….

कह लंकेश कवन तैं कीसा, केहि के बल घालेहिं बन खीसा, की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही, देखउं अति असंक सठ तोही ।।

भावार्थ:- लंकापति रावण ने कहा – रे वानर! तू कौन है ? किस के बल पर तूने वन को उजाड़ कर नष्ट कर डाला ? क्या तूने कभी मुझे (मेरा नाम और यश) कानों से नहीं सुना ? रे शठ! मैं तुझे अत्यंत नि:शंक देख रहा हूँ…..!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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