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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-110

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जय श्री राधे कृष्ण …….

कर जोरे सुर दिसिप बिनीता, भृकुटि बिलोकत सकल सभीता, देखि प्रताप न कपि मन संका, जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका ।।

भावार्थ:- देवता और दिक्पाल हाथ जोड़े बड़ी नम्रता के साथ भयभीत हुए सब रावण की भौं ताक रहे हैं (उसका रुख देख रहे हैं) । उस का ऐसा प्रताप देख कर भी हनुमान जी के मन में जरा भी डर नहीं हुआ । वे ऐसे निशंक खड़े रहे जैसे सर्पों के समूह में गरुड़ निशंक (निर्भय) रहते हैं……!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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