जय श्री राधे कृष्ण …….
“उठि बहोर कीन्हिसि बहु माया, जीति न जाइ प्रभंजन जाया ।।
भावार्थ:- फिर उठ कर उसने बहुत माया रची, परन्तु पवन के पुत्र उससे जीते नहीं जाते ।।
ब्रह्म अस्त्र तेहि साधा कपि मन कीन्ह बिचार, जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार!!
भावार्थ:- अन्त में उसने ब्रह्मास्त्र का संधान (प्रयोग) किया, तब हनुमान जी ने मन में विचार किया कि यदि ब्रह्मास्त्र को नहीं मानता हूँ तो उसकी अपार महिमा मिट जाएगी…..!!
दीन दयाल बिरिदु संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ।।
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
