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वफादारी -सत्यघटना

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वफादारी -सत्य घटना

बहादुर की उम्र अभी महज 10-12 साल ही थी परंतु घर की परिस्थितियों ने उसे एक छोटे से होटल पर काम करने को मजबूर कर दिया। एक चंचल सा बालक सारा दिन होटल पर काम करता और हर आने वाले ग्राहक का आदर सत्कार करता। उस होटल पर आकर प्रत्येक चाय पीने वाला इंसान बहादुर से प्रभावित होकर जाता। कई वर्ष बीत जाने पर बहादुर को भी भट्ठी के सामने खड़े होकर चाय बनाना आ गया था और कभी कभार जब उसके मालिक कुछ काम कर रहे होते तो वो काउंटर भी संभाल लेता था।  दिन बीतते गए और ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। मालिक को भी बहादुर पर इतना भरोसा हो गया था कि वह बहादुर के जिम्मे पूरा होटल छोड़कर कहीं भी चले जाते। वो पूरी मेहनत से  सारा काम संभाल लेता और मालिक के आने पर सारा हिसाब दे देता था।एक दिन होटल मालिक की पत्नी ने मालिक से कहा- आप इस छोटे से बच्चे के भरोसे पूरा काउंटर छोड़कर चले जाते हैं कहीं अपनी अनुपस्थिति में ये गल्ला से पैसे चुरा लेता हो तो..??मालिक ने पत्नी की बात को हंसी में टाल तो दिया परंतु उनके मन में एक शक पैदा हो गया।

एक दिन मालिक ने चुपके से मिठाई के काउंटर में अपना मोबाइल वीडियो रिकॉर्डिंग लगा के रख दिया और बहादुर को ये बताकर कहीं चले गए की वो शाम तक वापस आयेंगे। बहादुर ग्राहकों को चाय बनाकर पिलाता रहा और जो भी खाने पीने के समान वो मांगते देता रहा और पैसे लेकर गल्ला में रखता रहा।  उसे नही पता था कि चुपके से उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग हो रही है।शाम को जब मालिक लौटे तो बहादुर उनको सारा हिसाब देकर  घर चला गया। रात में जब मालिक और मालकिन ने साथ बैठकर मोबाइल में रिकार्ड हुआ वीडियो देखने लगे तो देखते देखे उनकी आंखों से अश्रुधारा बहने लगी…..उन्होंने देखा…

बहादुर काउंटर पर बैठा सभी ग्राहकों को चाय नाश्ता दे रहा था और पैसे लेकर गल्ले में रख रहा था। तभी बहादुर के पिता जी आए  और उन्होंने बहादुर से कहा – “बेटा! एक समोसा छोले के साथ खिला दो और एक चाय पिला दो….बहादुर ने कहा- ”एक छोले समोसे और एक चाय के कुल 15 रुपए पड़ेंगे। लाइए पैसे दे दीजिए फिर देता हूं।” उसके पिता जी बोले- ”हमसे पैसे ले लोगे..??? हम तुम्हारे बाप हैं। तुम हमारे ही बेटे हो। भला कोई अपने बाप से पैसे लेता है।”बहादुर ने कहा- ”इस वक्त मैं अपने मालिक का नौकर हूं जो उनके गल्ले पर बैठा होटल संभाल रहा हूं। आप पैसे दीजिए तभी आपको सामान मिल पाएगा। इस समय आप यहां के ग्राहक हैं और मैं अपने मालिक की अनुमति के बिना आपको बिना पैसे के कुछ भी नही दे सकता हूं।”    अंततः बहादुर के पिताजी ने पैसे दिए तब बहादुर ने उनको छोले समोसे और चाय का नाश्ता कराया और वो बुदबुदाते हुए चले गए।

होटल मालिक को वीडियो देखने के बाद खुद पर बहुत पछतावा हुआ और अगले दिन बहादुर सुबह जब होटल पर आया तो मालिक ने उसे गले लगा लिया। यह सत्य घटना है।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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