जय श्री राधे कृष्ण …….
“मोरें हृदय परम संदेहा, सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा, कनक भूधराकार सरीरा, समर भयंकर अतिबल बीरा….!!
भावार्थ:- अतः मेरे हृदय में बड़ा भारी संदेह होता है (कि तुम जैसे बंदर राक्षसों को कैसे जीतेंगे)। यह सुन कर हनुमान जी ने अपना शरीर प्रकट किया । सोने के पर्वत के आकार का अत्यंत विशाल शरीर था, जो युद्ध में शत्रुओं के ह्रदय में भय उत्पन्न करने वाला, अत्यंत बलवान और वीर था……!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
