देवरहा बाबा, भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष थे। डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने पूज्य देवरहा बाबा के समय-समय पर दर्शन कर अपने को कृतार्थ अनुभव किया था। पूज्य महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में पारंगत थे।
देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है। यहां तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है। वह यूपी के “नाथ” नदौली ग्राम,लार रोड, देवरिया जिले के रहने वाले थे। मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपना प्राण त्यागने वाले पूजनीय बाबा के जन्म के बारे में संशय है। कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जीवित रहे थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं।)
कुंभ कैंपस में संगम तट पर धुनि रमाए बाबा की करीब 10 सालों तक सेवा करने वाले मार्कण्डेय महाराज के अनुसार, पूरे जीवन निर्वस्त्र रहने वाले बाबा धरती से 12 फुट उंचे लकड़ी से बने मचान (बॉक्स) में रहते थे। वह नीचे केवल सुबह के समय स्नान करने के लिए आते थे। इनके भक्त पूरी दुनिया में फैले हैं। राजनेता, फिल्मी सितारे और बड़े-बड़े अधिकारी उनके शरण में रहते थे।
हिमालय में अनेक वर्षों तक अज्ञात रूप में रहकर उन्होंने साधना की। वहां से वे पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया नामक स्थान पर पहुंचे। वहां वर्षों निवास करने के कारण उनका नाम “देवरहा बाबा” पड़ा। पूजनीय देवरहा बाबा जी ने देवरिया जनपद के सलेमपुर तहसील में मइल (एक छोटा शहर) से लगभग एक कोस की दूरी पर सरयू नदी के किनारे एक मचान पर अपना डेरा डाल दिया और धर्म-कर्म करने लगे।
देवरहा बाबा परंम् रामभक्त थे, देवरहा बाबा के मुख में सदा राम नाम का वास था, वो भक्तो को राम मंत्र की दीक्षा दिया करते थे। वो सदा सरयू के किनारे रहा करते थे। उनका कहना था :-
“एक लकड़ी ह्रदय को मानो दूसर राम नाम पहिचानो
राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो “।
देवरहा बाबा जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे तथा प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तो को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे।
“ऊं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने
प्रणत: क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमो-नम:”।
बाबा कहते थे-“जीवन को पवित्र बनाए बिना, ईमानदारी, सात्विकता-सरसता के बिना भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होती। अत: सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाने का संकल्प लो। वे प्राय: गंगा या यमुना तट पर बनी घास-फूस की मचान पर रहकर साधना किया करते थे। दर्शनार्थ आने वाले भक्तजनों को वे सद्मार्ग पर चलते हुए अपना मानव जीवन सफल करने का आशीर्वाद देते थे। वे कहते, “इस भारतभूमि की दिव्यता का यह प्रमाण है कि इसमें भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने अवतार लिया है। यह देवभूमि है, इसकी सेवा, रक्षा तथा संवर्धन करना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है।”
प्रयागराज में सन् 1989 में महाकुंभ के पावन पर्व पर विश्व हिन्दू परिषद् के मंच से बाबा ने अपना पावन संदेश देते हुए कहा था-“दिव्यभूमि भारत की समृद्धि गोरक्षा, गोसेवा के बिना संभव नहीं होगी। गोहत्या का कलंक मिटाना अत्यावश्यक है।” पूज्य बाबा ने योग विद्या के जिज्ञासुओं को हठयोग की दसों मुद्राओं का प्रशिक्षण दिया। वे ध्यान योग, नाद योग, लय योग, प्राणायाम, त्राटक, ध्यान, धारणा, समाधि आदि की साधन पद्धतियों का जब विवेचन करते तो बड़े-बड़े धर्माचार्य उनके योग सम्बंधी ज्ञान के समक्ष नतमस्तक हो जाते थे।
श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे। प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी। श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है। जनश्रूति के मुताबिक, वह खेचरी मुद्रा की वजह से आवागमन से कहीं भी कभी भी चले जाते थे। उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होता था।
लोगों में विश्वास है कि बाबा जल पर चलते भी थे और अपने किसी भी गंतव्य स्थान पर जाने के लिए उन्होंने कभी भी सवारी नहीं की और ना ही उन्हें कभी किसी सवारी से कहीं जाते हुए देखा गया। बाबा हर साल कुंभ के समय प्रयाग आते थे। मार्कण्डेय सिंह के मुताबिक, वह किसी महिला के गर्भ से नहीं बल्कि पानी से अवतरित हुए थे। यमुना के किनारे वृन्दावन में वह 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवारों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।
लोगों का मानना है कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई। वह अवतारी व्यक्ति थे। उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था। वह फोटो कैमरे और टीवी जैसी चीजों को देख अचंभित रह जाते थे। वह उनसे अपनी फोटो लेने के लिए कहते थे, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि उनका फोटो नहीं बनता था। वह नहीं चाहते तो रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी। उनका निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण था।
वृंदावन में यमुना किनारे लकड़ी के मचान पर विराजमान होने वाले संत देवराहा बाबा ने फरवरी 1989 में प्रयागराज के कुंभ में राम मंदिर आंदोलन का समर्थन किया और ये घोषणा की थी कि राम मंदिर की मनोकामना पूर्ण होगी, हिंदू-मुस्लिम सब मिलकर इसका निर्माण करेंगे।
देवराहा बाबा ब्रह्मलीन हैं, लेकिन उनकी बात सच है। कहा जाता है कि विहिप के पदाधिकारी राम मंदिर आंदोलन को लेकर बाबा से चर्चा करने और उनका आदेश लेने आते थे। नौ नवंबर 1989 को राम मंदिर के लिए विहिप ने जब शिलान्यास की तिथि घोषित की, तो ये भी बाबा के आदेश पर हुआ। इसे लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, विदेश राज्यमंत्री नटवर सिंह, गृहमंत्री बूटा सिंह और मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी छह नवंबर 1989 को बाबा के पास पहुंचे। उस दौरान देवराहा बाबा से साक्षात्कार करने वाले वरिष्ठ पत्रकार व एमिटी यूनिवर्सिटी नोएडा में पत्रकारिता पढ़ाने वाले मनोज रघुवंशी बताते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी देवराहा बाबा के पास शिलान्यास के बाबत चर्चा करने आए थे। तब देवराहा बाबा ने कहा कि राम मंदिर बनेगा और निर्विघ्न बनेगा। बाबा ने कहा कि मंदिर बनेगा इसमें कोई संदेह नहीं है। मंदिर सबके सहयोग से बनेगा। उन्होंने ये भी कहा कि विहिप जो कार्य कर रहा है, वह हमारी आज्ञा से कर रहा है। राम मंदिर बनने में कोई विघ्न न करे। उन्होंने तब कहा कि मेरी सहमति से राम मंदिर आंदोलन चल रहा है। उन्होंने साक्षात्कार में ये भी कहा कि मंदिर बनने में सबका सहयोग है और राजीव गांधी अच्छी आत्मा है।
ऐसे रामभक्त हनुमान को नमन….
जय श्रीराम
