आडवाणी जी का जन्म 8 नवंबर 1927 को सिन्ध प्रान्त (पाकिस्तान) में हुआ था। वह कराची के सेंट पैट्रिक्स स्कूल में पढ़ें हैं और उनके देशभक्ति के जज्बे ने उन्हें राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया। वह जब महज 14 साल के थे, उस समय से उन्होंने अपना जीवन देश के नाम कर दिया। 15 साल की उम्र में 1942 में आरएसएस के एक स्वयंसेवक के रूप में सार्वजनिक जीवन की शुरूआत करने वाले लालकृष्ण आडवाणी अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता के साथ ही लालकृष्ण आडवाणी के संगठनकर्ता के रूप में योगदान को अहम माना जाता है।
दिग्गज नेता की राजनीतिक यात्रा: आडवाणी की राजनीति की शुरूआत 1957 से अटल बिहारी वाजपेयी और दीनदयाल उपाध्याय के सहयोगी के रूप में हुई। इसके साथ ही उन्होंने आर्गेनाइजर में काम करते हुए पत्रकारिता में भी हाथ आजमाया, लेकिन बाद में पूरा जीवन राजनीति को समर्पित कर दिया। 1970 में पहली बार राज्यसभा से संसद में प्रवेश करने वाले लालकृष्ण आडवाणी 2019 तक कुल 10 बार संसद सदस्य के रूप में रहे।
आडवाणी की सलाह से खड़ी हुई थी पार्टी: 1980 में आडवाणी ने ही वाजपेयी को सलाह दी थी कि जनता पार्टी परिवार से अलग होकर पार्टी का गठन करना चाहिए, क्योंकि तब के जनता पार्टी के नेता वाजपेयी के विकास को रोकने की कोशिश कर रहे थे। आडवाणी ने ही कमल फूल का चुनाव चिह्न चुना था। राजनीति में अटल-आडवाणी की जोड़ी बहुत सफल और अटूट मानी जाती थी।
1984 में दो सीटों पर सिमटने के बाद भी आडवाणी ने हार नहीं मानी और पांच साल बाद पार्टी को 85 सीटों पर पहुंचा दिया। इसके बाद भाजपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अमित शाह के अध्यक्ष रहते हुए दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। आडवाणी की सलाह से खड़ी हुई थी पार्टी: 1980 में आडवाणी ने ही वाजपेयी को सलाह दी थी कि जनता पार्टी परिवार से अलग होकर पार्टी का गठन करना चाहिए, क्योंकि तब के जनता पार्टी के नेता वाजपेयी के विकास को रोकने की कोशिश कर रहे थे। आडवाणी ने ही कमल फूल का चुनाव चिह्न चुना था। राजनीति में अटल-आडवाणी की जोड़ी बहुत सफल और अटूट मानी जाती थी।
अयोध्या में राम जन्मभूमि का मामला 1987 के आसपास गरमाने लगा था. हिंदू पक्ष लगातार विवादित स्थल का ताला खोलने और पूजा की मांग कर रहा था. विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा जैसे संगठन आंदोलनरत थे. केंद्र की कांग्रेस सरकार से बात भी हुई पर बात बन नहीं पाई.
पालमपुर के अधिवेशन में अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को भाजपा के एजेंडे में शामिल कराने और फिर 1990 में रामरथ यात्रा के सहारे इसे जन-जन तक पहुंचाने में आडवाणी की केंद्रीय भूमिका रही थी। ध्यान देने की बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उस समय रामरथ यात्रा के संयोजन में अहम भूमिका में रहे थे। 34 सालों बाद भव्य राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के 11 दिन बाद खुद प्रधानमंत्री मोदी ने आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित करने की सूचना दी। वैसे रामरथ से भारत रत्न तक की आडवाणी की यात्रा भी उतार चढ़ावों से भरी रही।
अयोध्या भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने भी खुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट फैसले से आज बहुत खुश हूं। देशवासियों की खुशी के साथ हूं। मंदिर आंदोलन आजादी के बाद का सबसे बड़ा आंदोलन था।
उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि मैं मंदिर आंदोलन का हिस्सा रहा। भगवान का शुक्रिया मैं इसका हिस्सा रहा। अयोध्या में जो भव्य राम मंदिर बनेगा वो राष्ट्र निर्माण होगा। भारत और दुनियाभर में रहने वाले करोड़ों हिंदुओं के दिल में राम जन्मभूमि को लेकर खास जगह है।
बीजेपी के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी (Bharat Ratna Lal Krishna Advani) को सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किए जाने के ऐलान के बाद से उनके समर्थकों और चाहने वालों में खुशी की लहर है. वह न सिर्फ बीजेपी के दिग्गज नेता बल्कि पार्टी के मजबूत स्तंभ भी हैं. एलके.आडवाणी वह शख्स हैं, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई. वह बीजेपी के संस्थापक सदस्य हैं. साल 1980 में बीजेपी के गठन के समय वह भी पार्टी में एक मजबूत पिलर रहे. लाल कृष्ण आडवाणी बीजेपी के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाले नेता हैं. वह लंबे समय तक सांसद के तौर पर देश की सेवा कर चुके हैं.
ऐसे रामभक्त हनुमान को नमन….
जय श्रीराम
