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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-75

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जय श्री राधे कृष्ण …….

“हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी, सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी, बूड़त बिरह जलधि हनुमाना, भयहु तात मो कहुँ जल जाना……!!.

भावार्थ:- भगवान का जन (सेवक) जान कर अत्यंत गाढ़ी प्रीत हो गई । नेत्रों में जल भर आया और शरीर अत्यंत पुलकित हो गया । (सीता जी ने कहा) हे तात हनुमान ! विरह सागर में डूबती हुई मुझ को तुम जहाज हुए …. ।।

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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