जय श्री राधे कृष्ण …….
“हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी, सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी, बूड़त बिरह जलधि हनुमाना, भयहु तात मो कहुँ जल जाना……!!.
भावार्थ:- भगवान का जन (सेवक) जान कर अत्यंत गाढ़ी प्रीत हो गई । नेत्रों में जल भर आया और शरीर अत्यंत पुलकित हो गया । (सीता जी ने कहा) हे तात हनुमान ! विरह सागर में डूबती हुई मुझ को तुम जहाज हुए …. ।।
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..