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विश्वास- श्री राम कथा से

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श्री राम कथा से

सुन्दर स्त्री बाद में शूर्पणखा निकली। सोने का हिरन बाद में मारीच निकला। भिक्षा माँगने वाला साधू बाद में रावण निकला। लंका में तो निशाचार लगातार रूप ही बदलते दिखते थे। हर जगह भ्रम, हर जगह अविश्वास, हर जगह शंका लेकिन बावजूद इसके जब लंका में अशोक वाटिका के नीचे सीता माँ को रामनाम की मुद्रिका मिलती है तो वो उस पर ‘विश्वास’ कर लेती हैं। वो मानती हैं और स्वीकार करती हैं कि इसे प्रभु श्री राम ने ही भेजा है।

जीवन में कई लोग हमें ठगेंगे, कई हमें निराश करेंगे, कई बार हम भी सम्पूर्ण परिस्थितियों पर संदेह करेंगे लेकिन इस पूरे माहौल में जब हम रुक कर पुनः किसी व्यक्ति, प्रकृति या अपने ऊपर ‘विश्वास’ करेंगे तो रामायण के पात्र बन जाएंगे। राम और माँ सीता केवल हमें ‘विश्वास करना’ ही तो सिखाते हैं। माँ कठोर हुईं लेकिन माँ से विश्वास नहीं छूटा, परिस्थितियाँ विषम हुई लेकिन उसके बेहतर होने का विश्वास नहीं छूटा, भाई-भाई का युद्ध देखा लेकिन अपने भाइयों से विश्वास नहीं छूटा, लक्ष्मण को मरणासन्न देखा लेकिन जीवन से विश्वास नहीं छूटा, सागर को विस्तृत देखा लेकिन अपने पुरुषार्थ से विश्वास नहीं छूटा, वानर और रीछ की सेना थी लेकिन विजय पर विश्वास नहीं छूटा और प्रेम को परीक्षा और वियोग में देखा लेकिन प्रेम से विश्वास नहीं छूटा।

भरत का विश्वास, विभीषण का विश्वास, शबरी का विश्वास, निषादराज का विश्वास, जामवंत का विश्वास, अहिल्या का विश्वास, कोशलपुर का विश्वास और इस ‘विश्वास’ पर हमारा-आपका अगाध विश्वास।

सच बात यही है कि जिस दिन हमें ये ‘विश्वास’ कर लिया कि ये विश्व हमारे पुरुषार्थ से ही खूबसूरत बनेगा उसी दिन ही हम ‘राम’ बन जाएंगे और फिर लगभग सारी परिस्थितियाँ हनुमान बनकर हमें आगे बढ़ाने में लग जाएंगी।

यहाँ हर किसी की रामायण है, हमारी अपनी भी होगी। जिसमें हमारे सामने सब है – रावण, शंका, भ्रम, असफलता, दुःख। बस हमें अपनी तरफ ‘विश्वास’ रखना है.. हमारा राम तत्व खुद उभर कर आता जायेगा।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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