जय श्री राधे कृष्ण …….
“पावकमय ससि स्रवत न आगी, मानहुँ मोहि जानि हतभागी, सुनहि बिनय मम बिटप असोका, सत्य नाम करु हरु मम सोका….!!
भावार्थ:– चंंद्रमा अग्निमय है, किन्तु वह भी मानो मुझे हतभागिनी जान कर आग नहीं बरसाता। हे अशोक वृक्ष! मेरी विनती सुन! मेरा शोक हर ले और अपना (अशोक) नाम सत्य कर….!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
