जय श्री राधे कृष्ण …….
“कह सीता बिधि भा प्रतिकूला, मिलिहि न पावक मिटिहि न सूला, देखिअत प्रगट गगन अंगारा, अवनि न आवत एकउ तारा….!!
भावार्थ:- सीता जी (मन ही मन) कहने लगीं – (क्या करूं) विधाता ही विपरीत हो गया। ना आग मिलेगी, ना पीड़ा मिटेगी। आकाश में अंगारे प्रगट दिखाई दे रहे हैं, पर पृथ्वी पर एक भी तारा नहीं आता…!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
