जय श्री राधे कृष्ण …….
“जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच, मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच…..!!
भावार्थ:– तब (इसके बाद) वे सब जहाँ तहाँ चलीं गईं । सीता जी मन में सोच करने लगीं कि एक महीना बीत जाने पर नीच राक्षस रावण मुझे मारेगा ।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ।।
त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी, मातु बिपति संगिनी तैं मोरी, तजौं देह करू बेगि उपाई, दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई….!!
भावार्थ:– सीता जी हाथ जोड़कर त्रिजटा से बोलीं- हे माता ! तू मेरी विपत्ति की संगिनी है । जल्दी कोई ऐसा उपाय कर जिससे मैं शरीर छोड़ सकूँ । विरह असह्य हो चला है, अब यह सहा नहीं जाता…!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
