जय श्री राधे कृष्ण …….
“त्रिजटा नाम राच्छसी एका, राम चरन रति निपुन बिबेका, सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना, सीतहि सेइ करहु हित अपना….!!
भावार्थ:- उनमें एक त्रिजटा नाम की राक्षसी थी। उसकी श्री राम चंद्र जी के चरणों में प्रीति थी और वह विवेक में निपुण थी । उसने सब को बुला कर अपना स्वप्न सुनाया और कहा सीता जी की सेवा करके अपना कल्याण कर लो…..!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
