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Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-58

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जय श्री राधे कृष्ण …….

त्रिजटा नाम राच्छसी एका, राम चरन रति निपुन बिबेका, सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना, सीतहि सेइ करहु हित अपना….!!

भावार्थ:- उनमें एक त्रिजटा नाम की राक्षसी थी। उसकी श्री राम चंद्र जी के चरणों में प्रीति थी और वह विवेक में निपुण थी । उसने सब को बुला कर अपना स्वप्न सुनाया और कहा सीता जी की सेवा करके अपना कल्याण कर लो…..!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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