lalittripathi@rediffmail.com
Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-55

107Views

जय श्री राधे कृष्ण …….

चंन्द्रहास हरु मम परितापं, रघुपति बिरह अनल संजातं, सीतल निसित बहसि बर धारा, कह सीता हरु मम दुख भारा…..!!

भावार्थ:- सीता जी कहती हैं, हे चन्द्रहास (तलवार), श्री रघुनाथ जी के विरह की अग्नि से उत्पन्न मेरी बड़ी भारी जलन को तू हर ले। हे तलवार, तू शीतल, तीव्र और श्रेष्ठ धारा बहाती है (अर्थात तेरी धारा ठंडी और तेज है), तू मेरे दु:ख के बोझ को हर ले….!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

Leave a Reply