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प्रेम कि पराकाष्ठा- नाच उठे बजरंगी

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प्रेम कि पराकाष्ठा नाच उठे बजरंगी

एक दिन हनुमानजी जब सीता जी की शरण में आए, नैनों में जल भरा हुआ है बैठ गए शीश झुकाए, सीता जी ने पूछा उनसे कहो लाडले बात क्या है, किस कारण ये छाई उदासी, नैनों में क्यों नीर भरा है ?….. हनुमान जी बोले मैया आपनें कुछ वरदान दिए हैं, अजर अमर की पदवी दी है, और बहुत सम्मान दिए हैं, अब मैं उन्हें लौटानें आया, मुझे अमर पद नहीं चाहिए, दूर रहूं मैं श्री चरणों से, ऐसा जीवन नहीं चाहिए। सीता जी मुस्काकर बोली बेटा ये क्या बोल रहे हो, अमृत को तो देव भी तरसे, तुम काहे को डोल रहे हो?….इतने में श्रीराम प्रभु आ गए और बोले, क्या चर्चा चल रही है मां बेटे में………….??

तब सीताजी बोली सुनो नाथ जी, ना जाने क्या हुआ हनुमानको, पदवी अजर-अमर लौटानें आया है ये मुझको। राम जी बोले क्यों बजरंगी ये क्या लीला नई रचाई, कौन भला छोड़ेगा , अमृत की ये अमर कमाई!! हनुमानजी रोकर बोले, आप साकेत पधार रहे हो, मुझे छोड़कर इस धरती से, आप वैकुंठ सिधार रहे हो, आप बिना क्या मेरा जीवन अमृत का विष पीना होगा, तड़प-तड़प कर विरह अग्नि में जीना भी क्या जीना होगा!! हनुमान जी बोले प्रभु अब आप ही बताओ, आप के बिना मैं यहां कैसे रहूंगा??…… तब इस पर प्रभु श्रीराम बोले….हनुमान सीता का यह वरदान सिर्फ आपके लिए ही नहीं है, बल्कि यह तो संसार भर के कल्याण के लिए है, तुम यहां रहोगे, और संसार का कल्याण करोगे।

मांगो हनुमान वरदान मांगो:- इस पर श्री हनुमानजी बोले। जहां जहां पर आपकी कथा हो, आपका नाम हो, वहां-वहां पर मैं उपस्थित होकर हमेशा आनंद लिया करूं, सीताजी बोलीं देदो प्रभु देदो,….. तब भगवान राम नें हंसकर कहा, तुम नहीं जानती सीता ये क्या मांग रहा है, ये अनगिनत शरीर मांग रहा है, जितनी जगह मेरा पाठ होगा उतनें शरीर मांग रहा है, तब सीताजी बोलीं, तो दे दो फिर क्या हुआ, आपका लाडला है। तब इस पर प्रभु श्रीराम बोले ,तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी, वहां विराजोगे बजरंगी, जहां हमारी चर्चा होगी, कथा जहां पर राम की होगी, वहां ये राम दुलारा होगा, जहां हमारा चिंतन होगा, वहां पे जिक्र तुम्हारा होगा।

कलयुग में मुझसे भी ज्यादा पूजा हो हनुमान तुम्हारी, जो कोई तुम्हरी शरण में आए, भक्ति उसको मिले हमारी,, मेरे हर मंदिर की शोभा बनकर आप विराजोगे, मेरे नाम का सुमिरन करके सुधबुध खोकर नाचोगे।।

नाच उठे ये सुन बजरंगी, चरणन शीश नवाया,  दुख-हर्ता सुख-कर्ता प्रभु का, प्यारा नाम ये गाया….. यही बस प्रेम…

जय श्री राम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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