ॐ का रहस्य क्या है?
ॐ का रहस्य क्या है? मन पर नियन्त्रण करके शब्दों का उच्चारण करने की क्रिया को मन्त्र कहते है। मन्त्र विज्ञान का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे मन व तन पर पड़ता है। मन्त्र का जाप मानसिक क्रिया है। कहा जाता...
ॐ का रहस्य क्या है? मन पर नियन्त्रण करके शब्दों का उच्चारण करने की क्रिया को मन्त्र कहते है। मन्त्र विज्ञान का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे मन व तन पर पड़ता है। मन्त्र का जाप मानसिक क्रिया है। कहा जाता...
जय श्री राधे कृष्ण ……. गहइ छाह सक सो न उड़ाई, एहि बिधि सदा गगनचर खाई,/सोइ छल हनूमान कह कीन्हा, तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा……!! भावार्थ:- उस परछाई को पकड़ लेती थी, जिससे वे उड़ नहीं सकते थे (और जल...
भगवान का उपहार गाँव के स्कूल में पढने वाली छुटकी आज बहुत खुश थी, उसका दाखिला शहर के एक अच्छे स्कूल में क्लास 6 में हो गया था। आज स्कूल का पहला दिन था और वो समय से पहले ही...
जय श्री राधे कृष्ण ……. निसिचर एक सिंधु महुँ रहई, करि माया नभु के खग गहई, जीव जन्तु जे गगन उड़ाहीं, जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं…..!! भावार्थ:- समुद्र में एक राक्षसी रहती थी। वह माया करके आकाश में उड़ते हुए...
किस्मत को कभी दोष दें, अपनी किस्मत आप खुद बनाते हैं। मोटीवेशनल स्पीकर विजय बत्रा ने कहा कि मेरे पास स्विच ऑन करने की टेक्नीक है, जिसे आप सबसे शेयर करना चाहता हूं। हमारे भीतर असीम ऊर्जा है, जो कई...
जय श्री राधे कृष्ण ……. राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान, आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान…..!! भावार्थ:- तुम श्री रामचंद्र जी का सब कार्य करोगे क्योंकि तुम बल -बुद्धि के भंडार हो। यह आशीर्वाद देकर वह...
"मां का आँचल" "हे भगवान! दो महीने के लिए मुझे सहनशक्ति देना, रात - दिन की रोका टोकी और जली कटी सुनने की हिम्मत देना"… पति हिमांशु के साथ गांव से आई अपनी रौबीली सास और ससुर को देखकर निशा...
जय श्री राधे कृष्ण ……. बदन पइठि पुनि बाहेर आवा, मागा बिदा ताहि सिरु नावा, मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा, बुधि बल मरमु तोर मैं पावा…!! भावार्थ:- और वे उसके मुख में घुसकर (तुरंत) फिर बाहर निकल आए और उसे...
भगवान कहाँ हैं ? कौन हैं ? किसने देखा है ? . मैं कईं दिनों से बेरोजगार था, एक एक रूपये की कीमत जैसे करोड़ो लग रही थी, इस उठापटक में था कि कहीं नौकरी लग जाए। आज एक इंटरव्यू...
जय श्री राधे कृष्ण ……. जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा, तासु दून कपि रूप देखावा, सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा, अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा…..!! भावार्थ:- जैसे-जैसे सुरसा मुख का विस्तार बढ़ाती थी, हनुमान जी उसका दूना रूप दिखलाते थे...