सुविचार-सुन्दरकाण्ड-29
जय श्री राधे कृष्ण ……. गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही, राम कृपा करि चितवा जाही, अति लघु रूप धरेउ हनुमाना, पैठा नगर सुमिरि भगवाना….!! भावार्थ:- और हे गरुड़ जी ! सुमेरु पर्वत उसके लिए रज के समान हो जाता है,...
जय श्री राधे कृष्ण ……. गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही, राम कृपा करि चितवा जाही, अति लघु रूप धरेउ हनुमाना, पैठा नगर सुमिरि भगवाना….!! भावार्थ:- और हे गरुड़ जी ! सुमेरु पर्वत उसके लिए रज के समान हो जाता है,...
भ्रम त्याग प्राणी एक बार कागज हवा के वेग से उड़ा और पर्वत के शिखर पर जा पहुँचा।पर्वत ने उसका आत्मीय स्वागत किया और कहा-भाई…..यहाँ कैसे पधारे, कागज ने कहा-अपने दम पर…..जैसे ही कागज ने अकड़ कर कहा तभी हवा...
जय श्री राधे कृष्ण ……. प्रबिसि नगर कीजे सब काजा, हृदयँ राखि कोसलपुर राजा, गरल सुधा रिपु करहिं मिताई, गोपद सिंधु अनल सितलाई…..!! भावार्थ:- अयोध्यापुरी के राजा श्री रघुनाथ जी को हृदय में रखे हुए नगर में प्रवेश करके सब...
मिट्टी का प्रभाव जिस भूमि मेँ जैसे कर्म किए जाते हैँ, वैसे ही संस्कार वह भूमि भी प्राप्त कर लेती है। इसलिए गृहस्थ को अपना घर सदैव पवित्र रखना चाहिए। मार्कण्डेय पुराण मेँ एक कथा आती है- राम लक्ष्मण सीता...
जय श्री राधे कृष्ण ……. तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग, तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग……!! भावार्थ:- हे तात ! स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाय,...
सकारात्मक विचार करें एक छोटे से खेत में एक जवान लड़का और उसका दादा मिट्टी खोद रहे थे। वे मिट्टी को पलट रहे थे, उसकी गांठों को तोड़ रहे थे ताकि मिट्टी उस वर्ष की बुवाई के लिए अच्छे से...
जय श्री राधे कृष्ण "उदासी यानी,अतीत में जीना. तनाव यानी,भविष्य में जीना.आनंद यानी,वर्तमान में जीना"…..!! सुप्रभात आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो.....
जय श्री राधे कृष्ण ……. बिकल होसि तैं कपि कें मारे, तब जानेसु निसिचर संघारे, तात मोर अति पुन्य बहूता, देखेउं नयन राम कर दूता……!! भावार्थ:- जब तू बंदर के मारने से व्याकुल हो जाय, तब तू राक्षसों का संहार...
धर्म और अधर्म क्या है? जिस रास्ते पर चलकर मनुष्य स्वंय को आत्मा के रूप में देखता है। भगवान के अंश के रूप में स्वंय को जानता है। उस मार्ग को धर्म कहते हैं। जब मनुष्य स्वंय को भगवान के...
जय श्री राधे कृष्ण ……. पुनि संभारि उठी सो लंका, जोरि पानि कर बिनय ससंका, जब रावनहिं ब्रम्ह बर दीन्हा, चलत बिरंची कहा मोहि चीन्हा…..!! भावार्थ:- वह लंकिनी फिर अपने को संभाल कर उठी और डर के मारे हाथ जोड़कर...