जय श्री राधे कृष्ण …….
जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा, तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा, सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती, करहिं सदा सेवक पर प्रीती….!!
भावार्थ:- जब श्री रघुवीर ने कृपा की है, तभी तो आपने मुझे हठ करके (अपनी ओर से) दर्शन दिए हैं । (हनुमान जी ने कहा) हे विभीषण जी ! सुनिए, प्रभु की यही रीति है कि वह सेवक पर सदा ही प्रेम किया करते हैं….!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..