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सकारात्मक” अभ्यास….

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सकारात्मक” अभ्यास….

एक महिला और उसका पति एक सर्कस में काम करते थे। महिला स्टेज में एक जगह खड़ी हो जाती थी और पति बिना देखे (आंख पर पट्टी बांधकर) तीर उसकी ओर मारता था जिससे उसके चारो ओर तीरों की डिजाइन बन जाती थी। उसके हर तीर के साथ तालियाँ बजती थी। एक दिन दोनों में खूब तकरार हो गई। पति को इतना गुस्सा आया कि उसने सर्कस के खेल में ही उसे मारने का मन बना लिया। रोज़ की तरह उस दिन भी तमाशा शुरू हुआ। उस व्यक्ति ने स्त्री को मारने के लक्ष्य करके तीर मारा। पर यह क्या, फिर तालियों की गडगड़ाहट। उसने जैसे अपनी आँखे की पट्टी खोली तो वह भी हैरान रह गया। तीर पहले की तरह ही आज भी स्त्री को छूते हुए किनारे लग जाता था।

यह है अभ्यास। क्योंकि उसको ऐसे ही अभ्यास था तो वह चाहकर भी गलत तीर नही मार सका। इस प्रकार जब हमारे मन मे सकारात्मक सोचने का अभ्यास हो जाता है तो वही मन अपने आप ही वश में रह कर अच्छे कार्य की ओर लग जाता है, और चाह कर भी गलत रास्ते पर नहीं चलता..

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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