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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-34

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जय श्री राधे कृष्ण …….

राम-राम तेहिं सुमिरन कीन्हा, हृदयं हरष कपि सज्जन चीन्हा, एहि सन हठि करिहउ पहिचानी, साधु ते होइ न कारज हानी ……!!

भावार्थ:- उन्होंने (विभीषण ने) राम नाम का स्मरण (उच्चारण) किया । हनुमान जी ने उन्हें सज्जन जाना और हृदय में हर्षित हुए । (हनुमान जी ने विचार किया कि) इन से हठ कर के (अपनी ओर से ही) परिचय करूंगा, क्योंकि साधु से कार्य की हानि नहीं होती (प्रत्युत लाभ ही होता है) …….!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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