भ्रम त्याग प्राणी
एक बार कागज हवा के वेग से उड़ा और पर्वत के शिखर पर जा पहुँचा।पर्वत ने उसका आत्मीय स्वागत किया और कहा-भाई…..यहाँ कैसे पधारे, कागज ने कहा-अपने दम पर…..जैसे ही कागज ने अकड़ कर कहा तभी हवा का दूसरा झोंका आया कागज को उड़ा ले गया! कागज नाली में गिरकर गल-सड़ गया। जो दशा कागज की वही हमारी है…. पुण्य की वायु का वेग हमें शिखर पर पहुँचा देता है और पाप का झोंका रसातल पर!
किसका मान 🤔किसका गुमान 🤔सन्त कहते हैं कि जीवन की सच्चाई को समझो। संसार के सारे संयोग हमारे अधीन हैं नहीं। कर्म के अधीन हैं और कर्म कब कैसी करवट बदल ले, कोई भरोसा नहीं।
इसलिए कर्मों की अधीनता को स्वीकार करो, परिस्थितियां उसके ही अनुकूल हैं…..बीज की यात्रा वृक्ष,नदी की यात्रा सागर और मनुष्य की यात्रा परमात्मा तक……! संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है। हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं। इसलिए कभी भी ये भ्रम न पालें कि मैं न होता तो क्या होता!
जय श्रीराम