जय श्री राधे कृष्ण …….
करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं, कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं, एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही, रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही…..!!
भावार्थ:- भयंकर शरीर वाले करोड़ों योद्धा यत्न करके (बड़ी सावधानी से) नगर की चारों दिशाओं में (सब ओर से) रखवाली करते हैं। कहीं दुष्ट राक्षस भैंसों, मनुष्यों, गायों, गधों और बकरों को खा रहे हैं। तुलसीदास ने इनकी कथा इसीलिए कुछ थोड़ी सी कही है कि ये निश्चय ही श्री रामचंद्र जी के बाण रूपी तीर्थ में शरीरों को त्याग कर परम गति पावेंगे …!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
