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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-18

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जय श्री राधे कृष्ण …….

कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुन्दरायतना घना , चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना, गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै, बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै…..!!

भावार्थ:- विचित्र मणियों से जुड़ा हुआ सोने का परकोटा है। उसके अंदर बहुत से सुंदर सुंदर घर हैं। चौराहे, बाजार, सुंदर मार्ग और गलियां हैं। सुंदर नगर बहुत प्रकार से सजा हुआ है। हाथी, घोड़े, खच्चरों के समूह तथा पैदल और रथों के समूहों को कौन गिन सकता है! अनेक रूपों के राक्षसों के दल हैं, उनकी अत्यंत बलवती सेना वर्णन करते नहीं बनती ….!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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