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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-14

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जय श्री राधे कृष्ण …….

गहइ छाह सक सो न उड़ाई, एहि बिधि सदा गगनचर खाई,/सोइ छल हनूमान कह कीन्हा, तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा……!!

भावार्थ:- उस परछाई को पकड़ लेती थी, जिससे वे उड़ नहीं सकते थे (और जल में गिर पड़ते थे) । इस प्रकार वह सदा आकाश में उड़ने वाले जीवों को खाया करती थी। उसने वही छल हनुमान जी से भी किया। हनुमान जी ने तुरंत ही उसका कपट पहचान लिया….. !!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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