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आईना

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आईना

दिवाली आने वाली थी। ऋचा घर के सभी कामों के साथ सफाई भी पूरी चुस्ती फुर्ती से कर रही थी। घर में उसके पति सास-ससुर,देवर-देवरानी,उसके दो बच्चे और एक देवर का बच्चा था। देवरानी नौकरी करती थी। इस तरह पूरे परिवार के काम का बोझ ऋचा पर ही था। इतने सभी लोगों का ध्यान रखते रखते कब ऋचा की सुबह से शाम हो जाती उसे पता ही नहीं चलता। एक दिन ऋचा जल्दी-जल्दी सब काम निपटा रही थी क्योंकि दस दिन बाद दीवाली थी और उसको बाज़ार से खरीदारी करने भी जाना था। वो काम निपटाकर जैसी ही घर की सीढियों से उतरने लगी तभी जल्दबाजी में उसका पैर फिसल गया और वो हाथ के बल नीचे आकर गिरी। उस दिन रविवार था घर के बाकी सदस्य भी घर में थी। उसके गिरने और दर्द से कराहने की आवाज़ सुनकर सब बाहर आए। ऋचा के पति ने तो उस पर ही चिल्लाना शुरू कर दिया। वो तो मां को दर्द में तड़फता देख बेटी ने बोला पापा बाकी बातें बाद में कर लेना पहले मम्मी को उठने में तो मदद करो। तब उसके ससुर जी ने भी बोला कि पहले ऋचा को डॉक्टर के दिखा के लाओ। उसका दर्द बढ़ता ही जा रहा है। पति गुस्से से भरे हुए उसको डॉक्टर के पास ले गए। ऋचा का बांए हाथ में बहुत दर्द था। एक्सरे में उस हाथ की हड्डी टूटी हुई आई थी। प्लास्टर चढ़ाया गया। बाकी जगह पर भी गुम चोट थी।

वो घर आई तो घर में उसकी सास और देवरानी के मुंह बने हुए थे। वो लोग ऋचा के दर्द से ज्यादा घर के कामों को लेकर परेशान थे। सास ने तो उसको सुनाते हुए ये भी कह दिया कि वो तो घर के सब कामों से छुट्टी पाकर आराम करेगी मुसीबत तो बाकी लोगों की आ गई है। जब पता है कि साल का इतना बड़ा त्यौहार है तब तो संभल कर काम करना चाहिए था। देवरानी अलग बोलने लगी कि उसको तो इतनी छुट्टियां भी नहीं मिलेंगी और वो घर और ऑफिस दोनों नहीं संभाल सकती। ऋचा की आंखों से तन के दर्द से ज्यादा अपने ससुराल वालों की कड़वी वाणी से जो घाव मिले थे वो आंसू के रूप में निकलने लगे। पति भी कुछ बोलने के थे तभी उसके ससुर जो इतनी देर से सबकी बातें सुन रहे थे वो बोले कि आजतक ऋचा ने सबका बहुत ख्याल रखा है। कभी बीमार भी हुई तो तुरंत दवाई लेकर फिर से काम में लग जाती थी। अगर घर का कोई भी सदस्य बीमार पड़ता था तो वो सबका बहुत ख्याल रखती थी पर आज उसके चोट क्या लगी तुम लोगों ने अपना रंग दिखा दिया।आज तुम लोगों के कड़वे बोलों और स्वार्थ ने ऋचा के किए-कराए पर झाड़ू मार दिया। ससुर जी की बात सुनकर सब लोगों को अपनी गल्ती का एहसास हुआ।उन्होंने ऋचा से अपने किए की माफ़ी मांगी और भविष्य में अपना पूर्ण सहयोग देने की बात कही। पिता सदर्श ससुर जी के अपनत्व ने उसके घावों पर तो मरहम लगाया ही था साथ ही साथ परिवार के सदस्यों को भी आईना दिखा दिया था।

जय श्रीराम

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Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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