ॐ जय जगदीश हरे
हमारे हिंदुस्तान में शायद कोई भी सनातनी हिंदू ऐसा नहीं होगा जिसने आरती “ॐ जय जगदीश हरे” नहीं सुना अथवा गाया होगा. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि…. प्रसिद्ध आरती “ॐ जय जगदीश हरे” ….कहाँ से आया और उसके रचयिता कौन है ???? ये जानना इसीलिए जरूरी है …क्योंकि, हममें से अधिकतर लोगों को लगता है कि ये आरती तो पौराणिक काल से ही गाई जाती होगी. तो, कुछेक लोग इस आरती को वेदों का एक भाग भी मानते हैं. जबकि…. कुछ लोग इसके रचयिता अभिनेता-निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार को मानते हैं. लेकिन…. ये सभी अंदाजे गलत हैं क्योंकि, ये आरती न तो वेद के हैं और न ही किसी फिल्म के…बल्कि, इस आरती के रचयिता… पंडित श्रद्धाराम शर्मा उर्फ श्रद्धाराम फिल्लौरी थे.
पंडित श्रद्धाराम शर्मा का जन्म पंजाब के जिले जालंधर में स्थित फिल्लौर शहर में हुआ था. वे सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिंदी और पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे…. उनका विवाह सिख महिला महताब कौर के साथ हुआ था. और… बचपन से ही उन्हें ज्योतिष और साहित्य के विषय में गहरी रूचि थी….उन्होने वैसे तो किसी प्रकार की शिक्षा हासिल नहीं की थी परंतु उन्होंने सात साल की उम्र तक गुरुमुखी में पढाई की…और, दस साल की उम्र तक वे संस्कृत, हिंदी, फ़ारसी भाषाओं तथा ज्योतिष की विधा में पारंगत हो चुके थे. उन्होने पंजाबी (गुरूमुखी) में ‘सिक्खां दे राज दी विथियाँ’ और ‘पंजाबी बातचीत’ जैसी पुस्तकें लिखीं. …”सिक्खां दे राज दी विथियाँ” उनकी पहली पुस्तक थी जिसमें उन्होने सिख धर्म की स्थापना एवं उसकी नीतियों के बारे में बहुत सारगर्भित रूप से बताया था. यह पुस्तक लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय साबित हुई थी और अंग्रेज सरकार ने तब होने वाली आईसीएस (जिसका भारतीय नाम अब आईएएस हो गया है) परीक्षा के कोर्स में इस पुस्तक को शामिल किया था…. पं. श्रद्धाराम शर्मा गुरूमुखी और पंजाबी के अच्छे जानकार थे तथा उन्होनें अपनी पहली पुस्तक गुरूमुखी में ही लिखी थी, परंतु… वे मानते थे कि हिंदी के माध्यम से ही अपनी बात को अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाया जा सकता है.
हिंदी के जाने माने लेखक और साहित्यकार पं. रामचंद्र शुक्ल ने पं. श्रद्धाराम शर्मा और भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी के पहले दो लेखकों में माना है. उन्होनें 1877 में भाग्यवती नामक एक उपन्यास लिखा था जो हिंदी में था. माना जाता है कि यह हिंदी का पहला उपन्यास है. …इस उपन्यास का प्रकाशन 1888 में हुआ था….इसके प्रकाशन से पहले ही पं. श्रद्धाराम का निधन हो गया परंतु उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने काफी कष्ट सहन करके भी इस उपन्यास का प्रकाशन करावाया था. वैसे पं. श्रद्धाराम शर्मा धार्मिक कथाओं और आख्यानों के लिए काफी प्रसिद्ध थे. वे महाभारत का उदाहरण देते हुए अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार कर देते थे कि उनका आख्यान सुनकर प्रत्येक व्यक्ति के भीतर देशभक्ति की भावना भर जाती थी… जिससे अंग्रेज सरकार की नींद उड़ने लगी और उसने 1865 में पं. श्रद्धाराम को फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी. …लेकिन उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों का पठन विद्यालयों में हो रहा था और वह जारी रहा….निष्कासन का उन पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उनकी लोकप्रियता और बढ गई…निष्कासन के दौरान उन्होनें कई पुस्तकें लिखी और लोगों के सम्पर्क में रहे.
पं. श्रद्धाराम ने अपने व्याख्यानों से लोगों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ क्रांति की मशाल ही नहीं जलाई बल्कि…. साक्षरता के लिए भी जबरदस्त काम किया…. 1870 में उन्होने एक ऐसी आरती लिखी जो भविष्य में घर घर में गाई जानी थी. ….वह आरती थी…. ॐ जय जगदीश हरे…
पं. शर्मा जहाँ कहीं व्याख्यान देने जाते ओम जय जगदीश आरती गाकर सुनाते. उनकी यह आरती लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगी और फिर तो आज कई पीढियाँ गुजर जाने के बाद भी यह आरती गाई जाती रही है और कालजई हो गई है. इस आरती का उपयोग प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक मनोज कुमार ने अपनी एक फिल्म “”पूरब और पश्चिम”” में किया था और इसलिए कई लोग इस आरती के साथ मनोज कुमार का नाम जोड़ देते हैं….पं. शर्मा सदैव प्रचार और आत्म प्रशंसा से दूर रहे थे. …शायद यही वजह है कि उनकी रचनाओं को चाव से पढने वाले लोग भी उनके जीवन और उनके कार्यों से परिचित नहीं हैं.
24 जून 1881 को लाहौर में पं. श्रद्धाराम शर्मा ने आखिरी सांस ली.
ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे |
ॐ जय जगदीश हरे
जय श्रीराम
