कल्पना द्वारा नकारात्मक को सकारात्मक में बदलना..
सुबह उठते ही पहली बात, कल्पना करें कि मै बहुत प्रसन्न हु। बिस्तर से प्रसन्न-चित्त उठें— आभा-मंडित, प्रफुल्लित, आशा-पूर्ण– जैसे कुछ समग्र, अनंत बहुमूल्य होने जा रहा ह। अपने बिस्तर से बहुत विधायक व आशा-पूर्ण चित्त से, कुछ ऐसे भाव से कि आज का यह दिन सामान्य दिन नहीं होगा– कि आज कुछ अनूठा, कुछ अद्वितीय मेरी प्रतीक्षा कर रहा है; वह मेरे करीब है। इसे दिन-भर बार-बार स्मरण रखने की कोशिश करें। सात दिनों के भीतर हम पाएंगे कि हमारा पूरा वर्तुल,पूरा ढंग,पूरी तरंगें बदल गई हैं।
जब रात को हम सोते हो तो कल्पना करे कि मै दिव्य के हाथों में जा रहा हु…..जैसे अस्तित्व मुझे सहारा दे रहा हो, मै उसकी गोद में सोने जा रहा हु । बस एक बात पर निरंतर ध्यान रखना है कि नींद के आने तक हमे कल्पना करते जाना है ताकि कल्पना नींद में प्रवेश कर जाए, वे दोनों एक दूसरे में घुलमिल जाएं।
किसी नकारात्मक बात की कल्पना नहो करनी है , क्योंकि जिन व्यक्तियों में निषेधात्मक कल्पना करने की क्षमता होती है, अगर वे ऐसी कल्पना करते हैं तो वह वास्तविकता में बदल जाती है। अगर मै कल्पना करता हु कि मै बीमार पडूंगा तो हम बीमार पड़ जाते है । अगर हम सोचते है कि कोई हमसे कठोरता से बात करेगा तो वह करेगा ही। हमारी कल्पना उसे साकार कर देगी।
तो जब भी कोई नकारात्मक विचार आए तो उसे एकदम सकारात्मक सोच में बदल दें। उसे नकार दें,छोड़ दें उसे,फेंक दें उसे।…एक सप्ताह के भीतर ही अनुभव होने लगेगा कि हम बिना किसी कारण के प्रसन्न रहने लगे है -बिना किसी कारण के..!!
जय श्रीराम
