lalittripathi@rediffmail.com
Stories

नवरात्रि का दिन

258Views

अमित अभी-अभी दुकान पर आया था। अमित परीक्षा होने के बाद पिताजी की सहायता के लिए दुकान पर रोज ही करीब करीब आ जाता था । आज घर में कन्या पूजन और भोज था, इस समय पिताजी घर पर खाना खाने गए हुए थे कि एक मजदूर  ने छाते का भाव पूछा। अमित ने बताया 400 रुपए।…..”आप ने कल भी पूछा था इसी छाते का दाम….।”  अमित ने उस मजदूर से कहा । ……”हाँ …पूछा तो था…।” मजदूर ने स्वीकार किया।…..” तो फिर कल और आज में क्या अंतर आएगा?” अमित बोला ।…..” हाँ भईया आप सही कह रहे है…आपके बाबूजी से मैंने इसका भाव पूछा ।”……”हाँ…तब भी ये चार सौ रुपए का ही था।”

“मैंने पिछले दिनों बारिश में भी पूछा था तो बाबूजी बोले थे …ऑफ सीजन में सस्ता मिल जाएगा।”….” अरे भाई..आप यही छाता क्यों लेना चाहते हैं….आप कहें तो सस्ता वाला दे देता हूँ ।”अमित बोला। ” अरे क्या बताऊँ … इधर सामने की झोपड़पट्टी में रहता हूँ.. मेरी छोटी सी प्यारी सी बेटी है. उसका  नाम  स्कूल में लिखवा दिया है…आप की दुकान रास्ते में है…आते-जाते इसी छाते को देखती है…वैसे तो किसी चीज़ के लिए जिद नहीं करती …पर न जाने क्यों उसे तो यही सतरंगी छाता ही चाहिए… मजदूर बोला।

मैंने सोचा अब तो बारिश गयी और सीजन भी नहीं तो शायद चार सौ से सस्ता हो गया हो…दो सौ रुपए तो लाया था मैं…।” मजदूर बोला। अमित ने देखा सड़क के उस तरफ खड़ी उस मजदूर की नन्ही बच्ची बड़ी आशाभरी निगाह से दुकान की ओर देख रही थी। पैसों को लेकर पिता की सख्ती और हिसाब वह अच्छी तरह से जानता था।  ” कुछ सोचकर अमित बोला…समझो …कि आज के लिए  है इसकी कीमत सौ रुपए है।” बाकी बचे 100 रुपए मेरी तरफ से बेटी को चॉकलेट के लिए।उसका इतना कहना था कि उस मजदूर ने तो लगभग छतरी झपट ली।

मित ने माँ के दिए कन्या पूजन के पाँच सौ रुपए जो उसे मंदिर में चढ़ाना था, उसमें से तीन सौ रुपए दुकान के गल्ले में डाल दिए। आज अमित को वास्तव में ज्ञान हुआ कि कन्या पूजन practically कैसे किया जा सकता है। सड़क के उस पार खड़ी देवी स्वरूपा बालिका खिलखिला के झूम उठी। नमन है ऐसे मजदूर पिता को और धन्य है ऐसे सभी माता-पिता  जो घर में बेटी को कभी देवी मानकर, तो कभी परी मानकर इतना प्यार करते है।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

Leave a Reply