स्त्री चरित्र का वैज्ञानिक – राजा भर्तुहरि
बात है आज से लगभग 2000 साल पहले की, जब मध्य भारत के उज्जैन नामक नगर में एक महाप्रतापी राजा राज करते थे। नाम था महाराज भर्तुहरि। महाराज भर्तुहरि के ही छोटे भाई थे राजा विक्रमादित्य, जिन्होंने विक्रम संवत की स्थापना की थी। महाराज भर्तुहरि एक नीतिकुशल राजा थे। महाराज की तीन रानियां थी। जिनमे से एक का नाम था पिंगला। महाराज पिंगला से बहुत प्रेम करते थे लेकिन पिंगला एक चरित्रहीन स्त्री थी।। उसी राज्य में एक ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण देवी का उपासक था। एक दिन देवी जगदम्बा प्रगट हुयी और ब्राह्मण को एक फल दिया और कहा की जो इस फल को खाएगा वो अमर हो जाएगा।। ब्राह्मण ने सोचा क्यों न ये फल महाराज को दे दूँ, क्योंकि महाराज अमर हो जायेंगे तो राज्य का भला होगा। ये सोचकर ब्राह्मण ने राजा भर्तुहरि को फल दे दिया और पूरी कहानी सुना दी.. राजा ने ब्राह्मण को उपहार देकर विदा किया और राजा ने अपनी रानी पिंगला को फल देते हुए कहा–मेरी प्राण प्यारी अगर तुम अमर रहोगी तो मुझे ख़ुशी होगी..रानी पिंगला चरित्रहीन थी वो एक दरोगा से प्रेम करती थी जो राजा की सेना में सैनिक था, रानी ने फल दरोगा को दे दिया।
दरोगा एक वैश्या के प्रति आसक्त था इसीलिए उसने वो फल वैश्या को दे दिया.. वैश्या राजा भर्तुहरि का सम्मान करती थी ,वैश्या ने सोचा कि हमारे महाराज कितने महान है, उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी है। ये सोचते हुए वैश्या ने वो फल महाराज भर्तुहरि को दे दिया और कहा की महाराज आप इस फल को खा लिजिये क्योंकि इसको खाने से आप अमर हो जाएँगे। फल देखकर राजा आश्चर्य चकित थे। वो सोच में पड़ गए की जो फल मैंने अपनी पत्नी को दिया वो इस वैश्या के पास कैसे पहुंचा???…..जांच के बाद पूरी कहानी सामने आ गई। महराज को मालूम पड़ गया की जिसको मैंने दिल से चाहा वो तो बेवफा निकली।। तब महाराज ने अपनी पत्नी यानि रानी पिंगला को मृत्युदंड दे दिया और अपने भाई विक्रमादित्य को राजा घोषित कर दिया। क्योंकि राजा विक्रम पर भी उसकी भाभी यानि रानी पिंगला ने बलात्कार का झूठा आरोप लगाया था। इसीलिए महाराज भर्तुहरि ने अपने भाई से माफ़ी मांगते हुए उसको राजा बना दिया और खुद ने संन्यास ले लिया।। संन्यास लेने के बाद भार्तुहरी में दो ग्रंथों की रचना की। 1)श्रृंगार शतक–इसमें स्त्री के गुण और दोष दोनों का वर्णन है… 2)नीति शतक—-इसमें राजनीति और दुष्ट स्त्रियों से बचने के उपायों का वर्णन है। ये दोनों ही ग्रन्थ में एक चीज जो आम है वो ये की दोनों ही ग्रंथों में स्त्री जाति के गुण दोष बताये गए है और उस से सावधान रहने की सीख दी गयी है। ये दोनों ही ग्रन्थ संस्कृत भाषा में है। और आज भी प्रासंगिक है।।
आज भी उज्जैन में भर्तुहरि महाराज की गुफा है जहाँ उन्होंने तपस्या की थी।
जय श्री राम