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हमारे पितर और हम

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जो पितृपक्ष को दिखावा कहते हैं उनके लिए।

एक पंडितजी को नदी में तर्पण करते देख एक फकीर अपनी बाल्टी से पानी गिराकर जाप करने लगे , ” मेरी प्यासी गाय को पानी मिले।” पंडितजी के पुछने पर बोले जब आपके चढाये जल भोग आपके पुरखों को मिल जाते हैं तो मेरी गाय को भी मिल जाएगा। पंडितजी बहुत लज्जित हुए।”

कहानी सुनाकर इंजीनियर साहब जोर से ठठाकर हँसने लगे। सब ढोंग है मिश्रा जी!! न मैं बहुत पुजा पाठ करने वाला हूँ न हिं इंजीनियर साहब कोई विधर्मी। पर शायद मैं कुछ ज्यादा हिं सहिष्णु हूँ इसलिए लोग मुझसे ऐसे कुतर्क करने से पहले ज्यादा सोचते नहीं। खैर मैने कुछ कहा नहीं बस सामने मेज पर से ‘कैलकुलेटर’ उठाकर एक नंबर डायल किया और कान से लगा लिया। बात न हो सकी तो इंजीनियर साहब से शिकायत की। वो भड़क गए । बोले- ” ये क्या मज़ाक है?? ‘कैलकुलेटर ‘ में मोबाइल का फंक्शन कैसे काम करेगा। “

तब मैंने कहा , ठीक वैसे हिं स्थूल शरीर छोड़ चुके लोगों के लिए बनी व्यवस्था जीवित प्राणियों पर कैसे काम करेगी। साहब झेंप मिटाते हुए कहने लगे- ” ये सब पाखण्ड है , अगर नहीं है तो सिद्ध करके दिखाइए।”…मैने कहा ये सब छोड़िए, ये बताइए न्युक्लीअर पर न्युट्रान के बम्बारमेण्ट करने से क्या ऊर्जा निकलती है ?….वो बोले – ” बिल्कुल! इट्स कॉल्ड एटॉमिक एनर्जी।”… फिर मैने उन्हें एक चॉक और पेपरवेट देकर कहा , अब आपके हाथ में बहुत सारे न्युक्लीयर्स भी हैं और न्युट्रांस भी।  एनर्जी निकाल के दिखाइए।  साहब समझ गए और तनिक लजा भी गए और बोले ” मिश्रा जी , एक काम याद आ गया; बाद में बात करते हैं। “

दोस्तों हम किसी विषय/तथ्य को यदि प्रत्यक्षतः सिद्ध नहीं कर सकते तो इसका अर्थ है कि हमारे पास समुचित ज्ञान,संसाधन वा अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं है , यह नहीं कि वह तथ्य हिं गलत है। हमारे द्वारा श्रद्धा से किए गए सभी कर्म दान आदि आध्यात्मिक ऊर्जा के रूप में हमारे पितरों तक अवश्य पहुँचते हैं।  कुतर्को मे फँसकर अपने धर्म व संस्कार के प्रति कुण्ठा न पालें।

जय श्री राम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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