सावन में यह कहानी अवश्य सुनें … गायत्री बाबा प्रतिदिन सरयू स्नान के लिए जाया करते थे। मार्ग में एक गाँव पड़ता था। ब्राह्मण और क्षत्रिय कृषक लोग उसमें रहा करते थे। जिस रास्ते से गायत्री बाबा जाया करते थे, उसमें एक विधवा ब्राह्मणी की भी झोंपड़ी पड़ती थी। महामुनि जब भी उधर से निकलते विधवा या तो चरखा कातते मिलती या धान कूटते। पूछने पर पता चला कि उसके पति के अतिरिक्त घर में आजीविका चलाने वाला और कोई नहीं था। वे किसी बंगालन जादूगरनी के पीछे प्राण गंवा बैठे और अब सारे परिवार का भरण-पोषण उसी को करना पड़ता है। एक ही पुत्र है, वह अभी अबोध है। अतीव वृद्धावस्था के सास-ससुर की सेवा सुश्रुषा की महती जिम्मेदारी भी है।
गायत्री बाबा को उसकी इस अवस्था पर बड़ी दया आई। उन्होंने उसके पास जाकर कहा, “भद्रे! मैं इस आश्रम का अध्यक्ष हूँ। मेरे कई शिष्य राज-परिवारों से संबंध रखते हैं, तुम चाहो तो तुम्हारे लिए आजीविका की स्थायी व्यवस्था कराई जा सकती है। तुम्हारी असहाय अवस्था मुझसे देखी नहीं जाती।” परन्तु कष्टों ने ब्राह्मणी का शरीर छीना था, उसका आत्मसम्मान और आत्मविश्वास अब भी वह्निशिखा के समान देदीप्यमान थे।
गंभीर स्वर में उसने बाबा को उत्तर दिया… “महाराज! आपकी असीम कृपा और करुणा से आज भी दो जून की रोटी में कोई समस्या नहीं। और जिस दिन न मिले, एकादशी हो जाती है। अब गायत्री बाबा पिघलने लगे….बोले “पुत्र को बुलाओ..
तीन चार वर्ष का गौरांग बालक महात्मा के समक्ष समुपस्थित हुआ। बाबा ने सर पर हाथ फेरा, “यहाँ से कुछ दूर पश्चिम दुग्धेश्वर शिव का निवास है वहाँ जा शिव से अपनी बात कह। कल्याण हो जाएगा।” बालक की माता ने कहा ..”परंतु यह इतना छोटा है ना मंत्र जानता है ना प्रार्थना ना स्तुति और वहाँ छोटी काशी में विद्वानों का जमघट…इसकी बात शिव क्यों सुनेंगे?”
” अरी! मृत्युंजय शिव अघोर उन सभी को मूक आमंत्रण देते हैं, — जिन्होंने कभी किसी तत्व से प्रेम किया है — जो, प्रेम की तलाश में भटकते रहे हैं– जिनके, स्वरों की प्रतिध्वनियाँ चट्टानों से टकराकर लौट आई हैं, तुझे जो आता है वही बोल देना शिव प्रसन्न होंगे।”
बाबा चल पड़े..छोटे ब्राह्मण पुत्र कुछ समय पश्चात दुग्धेश्वर शिव के दरबार में पहुंचे। स्तुति शुरू की—-“अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ॠ ऌ ॡ क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण (ड़, ढ़) त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ”
किसी ने मजाक उड़ाया किसी ने मखौल कोई हंसते गिरा.. किसी ने दया दिखाई और तभी चमत्कार हुआ। साक्षात मृत्युंजय महाकाल ने बच्चे को अपने अंक में भर लिया। यह दिव्य दर्शन मुख्य पुजारी माधवेन्द्र सरस्वती जी को भी उपलब्ध हुआ।
रुद्ध कंठ से सरस्वती जी एक प्रश्न पूछने से स्वयं को न रोक पाए…”प्रभु वर्षों से रुद्राष्टकम् लिंगाष्टकम् शिवमहिम्नस्तोत्रम तांडवस्तोत्रम रुद्र सूक्तम् पुरुष सूक्तम् की आवृत्तियां करते रहे, यह अहैतुकी कृपा नहीं हुई और हिंदी वर्णमाला पर प्रकट हो गए?”
आकाशवाणी हुई…”सरस्वती यह उसका सर्वस्व था जो उसने मुझे अर्पित कर दिया।” माधवेन्द्र सरस्वती अवाक। सामुद्रिक का अद्भुत विद्वान। बालक के पिछले तीन जन्मों का हिसाब लगाने लगे। अहो! देदीप्यमान साधक। पूर्वजन्मों में त्रिक दर्शन का अभ्यासी रहा।
अहा शैवी माया! ||तत्परं ब्रह्म यत्परं ब्रह्म स एकः य एकः स रुद्रः यो रुद्रः स ईशानः य ईशानः स भगवान् महेश्वरः||
जय श्रीराम
