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पिता-पुत्र

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एक छोटे से घर में एक सामान्य वर्ग का परिवार रहता था जिसमें माता-पिता व दो बच्चे रहते थे । उन बच्चों का नाम क्रमशः रेखा व रोहित था। रेखा, रोहित दोनों ही कॉलेज में हमेशा प्रथम आते थे। उनकी मां घर में सिलाई का काम करती थी व उनके पिता की एक किराने की दुकान थी। दोनों ही कड़ी मेहनत के साथ अपनी गृहस्थी सामान्य तरीके से चला रहे थे।

रेखा अक्सर पढ़ाई के साथ-साथ अपनी मां की सिलाई के काम में मदद करती थी। रोहित अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद अपने दोस्तों के साथ घूमता रहता था। जब कभी रोहित के पिता उसे दुकान पर काम करने के लिए बुलाते तो वह बहाना बनाकर दोस्तों के साथ चला जाता। रोहित के इसी रवईये से उसके पिता परेशान थे। इसी कारण वे रोहित को ड़ांटते व जलीकटी सुनाते। रोहित को लगता कि उसके पिता उसकी बहन को प्यार करते हैं उसे नहीं करते।

रोहित के सभी दोस्तों के पास बाईक है इसलिए वह अपने पिता से बाईक लेने की जिद करता है। रोहित के पिता उसे बाईक दिलाने के लिये मना कर देते हैं। इसी बात पर रोहित व उसके पिता के बीच बहस हो जाती है, तो रोहित बड़ब़ड़ाते हुए घर से बाहर निकल जाता है।

वह रास्ते में सोच रहा था कि पता नहीं कितना पैसा बचाकर रखेंगे कि मुझे एक बाईक नहीं दिला सकते, भला ऐसे भी किसी के पिता होते हैं । वह यही बड़बड़ाते हुए रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ रहा था कि अचानक उसके पैर में कुछ चुभने जैसा प्रतीत हुआ तो उसने देखा कि वह जल्दी के कारण पिता के जूते पहनकर निकला है। उसके पापा के जूते में एक कील उभरी थी जो उसके पैर में चुभ रही थी। वह कील उसके पैर में घाव कर रही थी लेकिन उस समय वह गुस्से में था वह बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ गया।

जैसे ही वह रेलवे स्टेशन पहुंचा तो उसने अपनी जेब में हाथ डाला तो उसे याद आया कि वह अपना पर्स तो घर पर ही भूल गया है। अब वह बिना पैसों के कैसे जाएगा। कुछ देर स्टेशन पर बैठने के बाद उसके दिमाग में एक खयाल आया कि वह चुपके से घर जायेगा और पैसे लेकर यहां से चला जायेगा।

रोहित वापस अपने घर में चुपके से गया और अपने पिता के कमरे में घुसा तो उसने पैसों के लिये अपने पापा की अलमारी खोली तो उसकी नजर वहां रखी एक पिता की डायरी पर पड़ी जिसे वे किसी को छूने भी नहीं देते थे। रोहित के खुराफाती दिमाग में उस डायरी को पढ़ने का विचार आया।

रोहित डायरी लेकर वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गया उसने सोचा- तो ये खजाना छुपा रखा है, जरूर इस डायरी में ये लिखा होगा कि किससे कितने पैसे लेने हैं और किसे कितने पैसे दिये हैं, लेकिन वह गलत था । जब उसने डायरी का पहला पन्ना खोलकर देखा तो उसके चेहरे के सारे भाव गायब हो गये।

क्योंकि उस डायरी में वैसे कुछ भी नहीं था जैसा कि वह सोच रहा था। उस डायरी के उन पैसों का हिसाब था जो उसके पिता ने अलग-अलग कामों के लिये लोगों से उधार लिए हैं। इनमें से ज्यादातर पैसे रोहित के कामों के कारण लिये गये थे। उस डायरी में एक लिस्ट थी जिसमें कम्प्यूटर का नाम भी था। लिखा कुछ यूं था- 50 हजार बेटे के कम्प्यूटर के लिए। ये वही कम्प्यूटर है जो रोहित आज भी यूज करता है लेकिन उसे यह नहीं पता था कि उस कम्प्यूटर के लिये पैसे कहां से आए। आज उसे इस डायरी से पता चला कि पैसे कहां से आये थे।

उस लिस्ट में उसके कैमरे का भी नाम था जो उसने अपने जन्मदिन गिफ्ट में जिद करके लिया था जो उसके पिता ने उसे लाकर दिया था। जिसे देखकर रोहित बहुत खुश हुआ था और उसे खुश देखकर उसके पिता उससे कई ज्यादा खुश हुए थे।

अब रोहित के चेहरे पर गुस्से की जगह मायूसी आ चुकी थी। अचनाक उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। जब रोहित ने दूसरा पन्ना पलटा तो वहां कुछ इच्छायें लिखी थीं। उसके पिता की पहली इच्छा थी “अच्छे जूते पहनना”। रोहित को पिता की इस इच्छा को पढ़ने के बाद समझ आया कि पिता जी के जूते में निकली कील ने रोहित को सिर्फ एक बार चोट दी है जबकि उसके पिता को न जाने कितनी चोट लगी होंगी।

रोहित को अपनी मां की कही कुछ बातें याद आती हैं। जब भी उसकी मां पिता जी को नये जूते लेने को कहती थी तो रोहित के पिता अक्सर यह कहकर टाल दिया करते थे कि उनके जूते तो अभी और चलेंगे। तभी रोहित ने डायरी का अगला पन्ना पलटा तो देखा कि वहां पर कल की तारीख लिखी थी। तारीख के नीचे लिखा था 50 हजार रुपये बाईक के लिये। जब रोहित ने यह लाईन पड़ी तो वह सन्न रह गया। जैसे रोहित का दिल और दिमाग स्थिर सा हो गया हो। अब रोहित के मन में कोई शिखवा गिला नहीं बची थी बस उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।

अब वह जल्दी से कमरे के बाहर गया। घर में मां अपना सिलाई का काम कर रही थीं और बहन गृह कार्य में व्यस्त थी। रोहित ने मां से जाकर पूंछा पिता जी कहां हैं, मां ने कहा-पता नहीं। रोहित समझ गया था कि वे कहां गये होंगे। वह सीधा भागकर पास वाली बाईक एजेन्सी में गया।

जैसे तैसे भाग कर वह बाईक एजेन्सी पहुंचा तो उसके पिता वहां एक बाईक देख रहे थे उसने दौड़ कर अपने पिता को गले लगाया और रोने लगा। रोहित ने नम आंखों से पिता से कहा कि पापा मुझे मोटरसाईकिल नहीं चाहिए। आप अपने लिये जूते लेलो। अब आज से मैं जो भी लूंगा वह अपने बलबूते पे अपनी मेहनत की कमाई से लूंगा।

पिता अपने सपनों को मारकर बच्चों के सपने को पूरा करने के लिये सारी उम्र मेहनत करता है। पिता भी बच्चों को उतना प्यार करते हैं जितना कि मां करती है। संसार के हर व्यक्ति को अपने माता-पिता की इज्जत करनी चाहिए। अगर आप के पास माता-पिता हैं तो आप खुशनसीब हैं। इस दुनियां में सिर्फ माता-पिता ही है जो बिना किसी कारण आपको खुश देखना चाहते हैं, आपकी तरक्की देखना चाहते हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें मां-बाप का प्यार भी नसीब नहीं होता। अतः आप अपने मां-बाप की भावनाओं का सम्मान करें उन्हें प्यार दें।

अगर यह कहानी अच्छी लगी तो अपने माता-पिता के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लो और प्रण करो कि आप उन्हें कभी दुखी नहीं करेंगे।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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