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नालायक बेटा

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बेटा , हमारा एक्सीडेंट हो गया है,मुझे तो ज्यादा चोट नहीं आई लेकिन तेरी माँ की हालत गंभीर है, कछ पैसों की जरुरत है और तेरी माँ को खुन भी देना है….बासठ साल के माधव जी ने अपने बडे बेटे से फोन पर कहा

पापा, मैं बहुत व्यस्त हूं,आजकल, मेरा आना नही हो सकेगा। मुझे विदेश मे नौकरी का पैकेज मिला है तो उसी की तैयारी कर रहा हूँ। आपका भी तो यही सपना था ना

इसलिये हाथ भी तंग चल रहा है,पैसे की व्यवस्था कर लीजिए मैं बाद मे दे दूंगा उनके बडे इंजिनियर बेटे ने जबाब दिया

उन्होनें अपने दूसरे डाॅक्टर बेटे को फोन किया तो उसने भी आने से मना कर दिया। उसे अपनी ससुराल मे शादी मे जाना था। हाँ इतना जरुर कहा कि पैसों की चिंता मत कीजिए, मै भिजवा दूंगा

यह अलग बात है कि उसने कभी पैसे नहीं भिजवाए उन्होंने मायुसी से फोन रख दिया…..

अब उस नालालक को फोन करके क्या फायदा, जब ये दो लायक बेटे कुछ नही कर रहे तो वो नालायक क्या कर लेगा  उन्होंने सोचा और बोझिल कदमों से अस्पताल मे पत्नी के पास पहुंचे और कुर्सी पर ढेर हो गये…

पुरानी बातें याद आने लगी….

माधव राय जी स्कुल मे शिक्षक थे। उनके तीन बेटे और एक बेटी थी।बडा इंजिनियर और मंझला डाक्टर था। दोनों की शादी बडे घराने मे हुई थी और अपनी पत्नियों के साथ अलग अलग शहरों मे रहते थे….बेटी की शादी भी उन्होंने खुब धुमधाम से की थी… सबसे छोटा बेटा पढाई मे ध्यान नही लगा पाया था, ग्यारहवीं के बाद उसने पढाई छोड दी और घर मे ही रहने लगा। कहता था मुझे नौकरी नहीं करनी अपने माता पिता की सेवा करनी है, इसी बात पर मास्टर साहब उससे बहुत नाराज रहते थे….

उन्होंने उसका नाम ही नालायक रख दिया था। दोनों बडे भाई पिता के आज्ञाकारी थे पर वह गलत बात पर उनसे भी बहस कर बैठता था। इसलिये माधव जी उसे पसंद नही करते थे….. जब माधव जी रिटायर हुए तो जमा पुँजी कुछ भी नहीं थी। सारी बचत दोनों बच्चों की उच्च शिक्षा और बेटी की शादी मे खर्च हो गई थी। शहर मे एक घर्,थोडी जमीन और गाँव मे थोडी सी जमीन थी। घर का खर्च उनकी पेंशन से चल रहा था….

माधव जी को जब लगा कि छोटा सुधरने वाला नही तो उन्होंने बँटवारा कर दिया और उसके हिस्से की जमीन उसे देकर उसे गाँव मे ही रहने भेज दिया। हालाँकि वह जाना नही चाहता था पर पिता की जिद के आगे झुक गया और गाँव मे ही झोंपडी बनाकर रहने लगा। माधव जी सबसे अपने दोनों होनहार और लायक बेटों की बड़ाई किया करते। उनका सीना गर्व से चौडा हो जाता था। पर उस नालायक का नाम भी नही लेते थे।

दो दिन पहले दोनों पति पत्नी का एक्सीडेन्ट हो गया था, वह अपनी पत्नी के साथ सरकारी अस्पताल मे भर्ती थे और डाॅक्टर ने उनकी पत्नी को आपरेशन करने को कहा था।

पापा, पापा! सुन कर तंद्रा टुटी तो देखा सामने वही नालायक खड़ा था। उन्होंने गुस्से से मुंह फेर लिया। पर उसने पापा के पैर छुए और रोते हुए बोला:- पापा आपने इस नालायक को क्यों नही बताया पर मैने भी आप लोगों पर जासुस छोड रखे हैं। खबर मिलते ही भागा आया हूं….

पापा के विरोध के वावजुद उसने उनको एक बडे अस्पताल मे भरती कराया। माँ का आपरेशन कराया और अपना खुन दिया। दिन रात उनकी सेवा मे लगा रहता कि एक दिन वह गायब हो गया।

वह उसके बारे मे फिर बुरा सोचने लगे थे कि तीसरे दिन वह वापस आ गया। महीने भर मे ही माँ एकदम भली चंगी हो गई। वह अस्पताल से छुट्टी लेकर उन लोगों को घर ले आया। माधव जी के पुछने पर बता दिया कि खैराती अस्पताल था पैसे नही लगे हैं।

घर मे नौकरानी थी ही। वह उन लोगों को छोड कर वापस गाँव चला गया।

धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो गया….

एक दिन यूँ ही उनके मन मे आया कि उस नालायक की खबर ली जाए। दोनों जब गाँव के खेत पर पहुँचे तो झोपडी मे ताला देख कर चौंके। उनके खेत मे काम कर रहे आदमी से पुछा तो उसने कहा:-यह खेत अब मेरे हैं

क्या..पर यह खेत तो….उन्हे बहुत आश्चर्य हुआ। हां,उसकी माँ की तबीयत बहुत खराब थी। उसके पास पैसे नहीं थे तो उसने अपने सारे खेत बेच दिये। वह रोजी रोटी की तलाश मे दूसरे शहर चला गया है,बस यह झोपडी उसके पास रह गई है। यह रही उसकी चाबी….उस आदमी ने कहा

वह झोपडी मे दाखिल हुये तो बरबस उस नालायक की याद आ गई। टेबुल पर पडा लिफाफा खोल कर देखा तो उसमे रखा अस्पताल का नौ लाख का बिल उनको मुँह चिढाने लगा।

उन्होंने अपनी पत्नी से कहा:-जानकी तुम्हारा बेटा “नालायक” तो था ही “झूठा” भी निकला अचानक उनकी आँखों से आँसू गिरने लगे और वह जोर से चिल्लाये:-

तु कहाँ चला गया नालायक…

अपने पापा को छोड कर,एक बार वापस आ जा फिर मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूंगा…उनकी पत्नी के आँसू भी वहे जा रहे थे। और माधव जी को इंतजार था अपने नालायक बेटे को अपने गले से लगाने का। सचमुच बहुत नालायक था वो

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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