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अनजानी मदद

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अनजानी मदद

रात के 11:00 बजे थे और अचानक घर की घंटी बजी। रवि चौंक गया!! इतनी रात को कौन आया? दरवाजा खोल कर घर के बाहर आया तो देखता है कि सामने एक वृद्ध सज्जन खड़े हैं। एक ऑटो पर आए हुए तेजी से हाफ रहें थे और उन सज्जन ने उससे पूछा, “बेटा, आपका नाम?”
उसने बोला ,”रवि”

वृद्ध सज्जन ने कहा, “हे भगवान तेरा लाख-लाख शुक्रिया, घर मिल गया।” रवि को कुछ समझ नहीं आया, वृद्ध सज्जन ने कहा,”पानी मिलेगा?” रवि ने कहा, “आइए, घर के अंदर आइए।” और रवि ने उनको पानी पिलाया।

उसके बाद वृद्ध सज्जन ने रवि के हाथ में एक चिट्ठी दी। रवि ने उस चिट्ठी को पढ़ा, पढ़कर वह दूसरे कमरे मे गया। 3-4 मिनट्स मे रवि वहाँ वापिस आया और उस ऑटो वाले को कहा,”भाई साहब आप चले जाइए।” और वृद्ध सज्जन का सामान उतार कर घर के अंदर ले आया और कहा, “अंकल रात बहुत हो गई है, आप सो जाइए। मैं आपका काम कल सुबह कर दूँगा।”

उस चिट्ठी में रवि के पिता ने रवि के लिए कुछ लिखा था। और वृद्ध सज्जन ने कहा कि, “आपके पिता ने मुझे भरोसा दिलाया है कि मेरा लड़का आपका काम जरूर से जरूर करेगा, आप बिना किसी चिंता के निसंकोच वहाँ चले जाओ।”

बात यह थी कि उस वृद्ध सज्जन के एकमात्र बेटे का अचानक एक सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया था। सिर्फ बुजुर्ग दंपत्ति घर में थे और लालन-पालन की दिक्कत होने लग गई थी। यहाँ तक कि दैनिक जीवन के खर्चों की भी पूर्ति नही कर पा रहे थे। वह तो नहीं चाहते थे, अपने बेटे की मृत्यु का कंपनसेशन लेना, लेकिन जब कोई रास्ता ना बचा तो मजबूरी में उनको कंपनसेशन लेने का सोचना पड़ा और जब सोचना पड़ा तो उन्हें पता चला कि एक कागज है जो उन्हें दिल्ली में जाकर सर्टिफाई कराना पड़ेगा।

सालों साल वृद्ध सज्जन अपने छोटे से गाँव से बाहर निकले नहीं थे, दिल्ली उनके लिए बहुत डरावनी और बहुत बड़ी जगह थी। इतने में उनके पुराने मालिक ने अपने बेटे के नाम से चिट्ठी बनाकर दी कि जाओ मेरा बेटा रवि आपकी मदद करेगा।

अगले दिन सुबह अंकल उठे, रवि ने उनको बढ़िया नाश्ता कराया। अपनी गाड़ी में बिठाया। रवि ने छुट्टी ली और छुट्टी लेकर रवि उस ऑफिस में गया, फिर बहुत मेहनत मशक्कत करके आखिर वह दस्तावेज निकाल दिए। दस्तावेज सर्टिफाइड कराने के बाद अंकल के बस की टिकट करा दी। टिकट के साथ मिठाई का एक डब्बा दिया और बस स्टैंड पर छोड़कर निकलने ही वाला था कि इतने में वृद्ध सज्जन ने हाथ जोड़कर कहा, “रवि तुम्हारे पिता धन्य है कि उन्होंने तुम्हारे जैसी संतान को पैदा किया। वे बहुत भाग्यशाली है। तुम कुछ कहना चाहते हो क्या? मैं आपके पिता को संदेश दे दूँगा। कहना तो मुझे भी बहुत कुछ है, पर अगर आपकी कोई बात पहुँचानी हो तो…..”

रवि एक पल के लिए एकदम शांत हो जाता है। फिर धीरे से कहता है, “माफ कीजिएगा अंकल, आपसे एक बात कहना चाहता हूँ।” वे सज्जन बोले, “कहिए न बेटा।” रवि ने कहा, “अंकल मैं वह रवि नहीं हूँ।” उस पर उस वृद्ध सज्जन ने हैरानी से कहा, “पर बेटा तुम्हारे मकान के बाहर तो रवि निवास लिखा था।”

“हाँ, वह मेरा रवि निवास है। मेरा नाम भी रवि है, लेकिन मैं वह रवि नहीं हूँ, जिसे आप ढूँढने आए थे।”

उस वृद्ध सज्जन को कुछ समझ नहीं आया, तो रवि बोला, “कल रात को जब आप आए थे, तब आप हाफ रहे थे, लेकिन आपकी आँखों में वह उम्मीद थी कि उनका बेटा आपकी मदद जरूर करेगा। जब मैंने चिट्ठी पढ़ी तो मैंने आपके वाले रवि को फोन किया। वह एकदम से परेशान हो गया और असमंज मे पड़ गया क्योंकि वह कहीं बाहर गया हुआ था और आठ दस दिन बाद आने वाला था। साथ ही आपको देखकर मुझे मेरे पिता याद आ गए, जिनके लिए मैं जीवन भर कुछ ना कर पाया। मेरे पास हिम्मत भी नहीं थी कि मैं आपकी उम्र और भावना को देखते हुए आपको वापस भेज सकूँ। तब मैंने निर्णय लिया कि आपका यह काम मैं करूँगा।”

उस वृद्ध व्यक्ति की आँखों से आँसु बहने लगे और वह बोले कि, “तुम रवि को जानते नहीं हो?” रवि बोला, “अंकल मैं उसको नही जानता , आपकी चिट्ठी में उनका फोन नंबर था, मैंने उन्हें फोन लगाया।”

उस पर उन्होंने फिर से पूछा, “तुम वह रवि भी नहीं हो?” वह फिर से बोला, “हाँ, मैं वह रवि भी नहीं हूँ।” उस पर उस वृद्ध ने कहा, “फिर भी तुमने मेरे लिए छुट्टी ली और इतना किया। कौन कहता है भगवान नहीं होता, कौन कहता है कि खुदा नहीं होता।” इसको बार-बार दोहराते हुए वह बस में बैठ कर चले गए। रवि अपने घर पहुँचा और उस रात उसे अपने जीवन की सबसे ज्यादा सुकून वाली नींद आई।

शिक्षा:-साथियों जीवन में हम अपने रिश्तेदारों की, दोस्तों की अपने परिवार वालों की अपने साथ काम करने वालो की मदद करते है, इतने में ही हमारी दुनिया सिमट जाती है। पर क्या कभी हमने बिना किसी कारण के किसी अनजान की, जिसे हम जानते नही, पहचानते नही, उनकी मदद की है? एक बार ऐसा करके देखें, हम भी चैन की ऐसी दशा का अनुभव करेंगे जिसे शायद हम सभी खोज रहे है।

“सेवा आध्यात्मिक जीवन की प्रेरक शक्ति है। यदि आप स्वयं को दिव्य शक्ति के अधीन रखकर प्रेम और दृढ़ विश्वास के साथ सेवा करें तो चाहे यह सक्रिय सेवा हो या निष्क्रिय, पर्याप्त है और इसका उद्देश्य पूर्ण हो जाता है।”

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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