स्वयं के लिये जीने वाले की ओर कोई ध्यान नहीं देता पर जब आप दूसरों के लिये जीना सीख लेते हैं तो वे भी आपके लिये जीने लग जाते हैं। वृक्ष हमें फल तब ही दे पाते हैं जब हम उनकी अच्छे से परवरिश करते हैं। समय – समय पर खाद पानी देते हैं और उचित देखरेख करते हैं । जिस दिन हमारे मन में उनके लिए उपेक्षा का भाव आ जायेगा तो वो भी हमें अपनी शीतल छाया और मधुर फलों से वंचित कर देंगें।
एक महत्वपूर्ण बात और यदि आपका जीवन आम की तरह मधुर फल बाँटने वाला होगा तो हर कोई आपकी सेवा व सुरक्षा में तत्पर रहेगा और यदि आपका जीवन बबूल की तरह दूसरों को चुभन देने वाला हुआ तो एक दिन उखाड़कर फेंक दिए जाओगे। जो उपयोगी होता है वही मूल्यवान भी होता है, यही प्रकृत्ति का शाश्वत नियम है।
ठीक इसी प्रकार समाज में भी जब तक हमारा जीवन परोपकार और परमार्थ में संलग्न रहेगा तब तक हमारी प्रतिष्ठा भी बनी रहेगी और उपयोगिता भी बनी रहेगी। परमार्थ ही प्रतिष्ठा को जन्म देता है। आप दूसरों के लिए अच्छा सोचो, आप दूसरों के लिए जीना सीख लो, हजारों-लाखों होंठ प्रतिदिन आपके लिए प्रार्थना करने को आतुर रहेंगे..!
जय श्रीराम

जय श्रीराम