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सकून की कमाई

#सकून की कमाई #जिम्मेदारी #रोजी रोटी #भींगी हुई पलकों #बाबा ईश्वर #जय श्रीराम

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अपने पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद मां का दरदर भटकना सुधा से देखा नहीं जा रहा था और फिर वह घर की सबसे बड़ी बेटी थी इसलिए उसने स्वयं अपने कंधों पर घर की मां और छोटे भाई बहन की जिम्मेदारी उठाने का निर्णय लिया।

काफी कोशिशों के बाद आखिरकार उसे एक नौकरी मिल ही गई मगर ये उसके घर से काफी दूर थी।

जिसके लिए उसे पहले लोकल सवारी आटो जोकि शेयरिंग वाली होती है उसे लेकर बस अड्डे तक पहुंचना होगा और उसके बाद लगभग डेढ़ घंटे बस का सफर उसके बाद कंपनी में काम।

खैर परिवार की जिम्मेदारी उठानी ही थी तो वह खुशी खुशी मान गई। ऐसे ही वह घर का बेटा बन गई। यूं तो उसे नौकरी करते हुए दो महीने से ऊपर हो चले थे, सबकुछ ठीक ही चल रहा था मगर आज दोपहर से जो बरसात शुरू हुई वह शाम को ड्यूटी खत्म होने तक भी नहीं रुकीं थी।

वह जैसे तैसे घर वापसी के लिए बस स्टैंड पहुंचीं मगर लगभग एक घंटा बीतने पर भी उसे बस नहीं मिल पाई। कंधे पर अपना बैग लटकाएं हुए वह बस की इंतजार कर  रही थी। अब बरसात बंद हो गई चुकी थी।

आखिरकार बस भी आ ही गई। बस में बहुत भीड़ थी। महिलाएं कम पुरुष अधिक और उनकी नजरें जो उसके भीगे हुए कपड़ों घूरती सी प्रतीत हो रही थी। घर देर से पहुंचना मतलब मां और छोटे भाई बहन का परेशान होना और उसपर महिलाओं के साथ घटने वाली  घटनाओं के कारण वह स्वयं भी डरी हुई थी। जैसे तैसे बस जाम से जूझते हुए डेढ़ घंटे की बजाय ढाई घंटे में बस अड्डे तक पहुंच ही गई मगर आज रोज साढ़े सात की जगह रात के नौ बज गए थे। स्टैंड पर आटो भी नहीं था। उसने वहां रुककर इंतजार करने की बजाय पैदल चलना ही उचित समझा ताकि वह घर पहुंच सके।

अभी वह करीब सौ मीटर ही चली होगी कि एक साइकिल रिक्शा उसकी तरफ आता दिखाई दिया और वह रिक्शा उस के पास आकर रुक गया।

आशंकित मन से उसने रिक्शा वाले को देखा बूढ़ा बुजुर्ग.. सफेद बाल और लाल-लाल आंखें उस रिक्शा चालक को देखकर वह सोच ही रही थी कि उसमें बैठे या नहीं, तभी रिक्शा चालक बोल पडा “बिटिया किस तरफ जाना है, आओ बैठो”

     पता नहीं क्यों, उसकी बातों में अपनापन लगा और सुधा उस रिक्शा में बैठकर घर का रास्ता बताने लगी। करीब आधे घंटे बाद रिक्शा उस के घर के सामने पहुंच गया।

संतोष भरी सांस लेते हुए सुधा पर्स में रुपये निकालने लगी कि रिक्शा वाला बोला …”नहीं बिटिया पैसे नही लूंगा…”

“मैं भी इसी तरफ रहता हूं जब से हमारा देश बहन-बेटियों की रूह कंपाने वाली घटनाओं से उबल रहा है… आखिरी सवारी के रूप में रोज ही किसी बहन या बेटी को सुरक्षित घर पहुंचा देता हूं”

     मगर आप की मेहनत..मेरा मतलब ये तो आपकी रोजी रोटी कमाई का जरिया है तो फिर…

“हां बिटिया….मगर मैं कमाता तो जरूर हूं”..सुधा ने हैरानी से रिक्शा वाले को देखते हुए पूछा “क्या बाबा….”

सुकून…

कहकर वह रिक्शा वाला मुस्कुराते हुए वहां से चला गया और सुधा भींगी हुई पलकों को साफ करते हुए बुदबुदा उठी…

“बाबा ईश्वर आपकी इस कमाई में हमेशा बरकत बनाए रखें”

जय श्रीराम

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Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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