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कर्मण्येवाधिकारस्ते!- साइड इफ़ेक्ट

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“उफ़! फिर वही कान फाड़ संगीत!” भावना के सिर की नसें फिर दुखने लगीं। कुछ होने वाला तो है नही, पिछली बार की तरह इस बार भी, पिछली बार का उपक्रम याद आने लगा।

भावना- “मैं वॉल्यूम धीमा करने के लिए बोलने जा रही हूं…”

पति (आंखें फाड़कर)- “और तुम्हारे कहने से वो धीमा कर देंगे? मुझे नहीं पता था कि मेरी पत्नी इतनी बड़ी नेता है”  भावना (चिढ़कर)- “मज़ाक नहीं बनाइए”

पति- “अरे मैं मज़ाक थोड़े ही बना रहा था। मैं तो कोशिश कर रहा था कि तुम्हारा मज़ाक न बने जाओ मेरी झांसी की रानी। मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं” पति ने झांसी की रानी बोला और मुझे “डॉन” ध्वनित हुआ।

सीढ़ियों तक पहुंची, तो मिसेज़ कांति दिखीं, कांति- “कहिए भावना जी किधर को?”

“ज़रा वॉल्यूम स्लो करने को कहने जा रही हूं”  कांति- “अच्छा बड़ी हिम्मती हैं आप! इस शोर में मेरी बेटी भी पढ़ नहीं पा रही। ग़ुस्सा तो मुझे भी बहुत आ रही है मगर…” “अच्छा! तो फिर आप भी मेरे साथ चलिए। एकता में बल है”

“न बाबा! बिना मतलब अपना मज़ाक बनवाने से क्या फ़ायदा? कुछ होना-जाना है नहीं”  “मगर कोशिश करने में…”

“न बाबा! मुझे बख्शें! ये काम आप जैसे दृढ़ संकल्पियों का ही है”, कांति ने दृढ़ संकल्पियों बोला और मुझे “सनकी” ध्वनित हुआ

एक मज़िल और उतरने पर रीना दिखी। अपनी टूटी खिड़की में गत्ता लगाती हुई।  रीना- “भावनाजी आपके पास इस आकार का गत्ता पड़ा होगा घर में? मेरी मां दिल की मरीज़ है, इसलिए सब काम छोड़कर इसमें लगी हूं। इस आवाज़ से उन्हें बहुत तकलीफ़ हो रही है”

अच्छा तो आप भी मेरे साथ चलिए। संगठन में…” रीना- “न बाबा! ‘देश आज़ाद है और हमें जितना मर्ज़ी शोर करने की आज़ादी है, यही जवाब मिलने वाला है.” भावना- “हां, मगर हम कह सकते हैं कि जहां से हमारे कान शुरू होते हैं, वहां से उनकी आज़ादी ख़त्म हो जाती है “

रीना- “और आपको लगता है कि इतने शोर में आपकी बात वो सुन भी लेंगे और मान भी लेंगे। बड़ी आशावादी हैं आप” रीना ने शब्द आशावादी बोला और मुझे “बेवकूफ़” ध्वनित हुआ

“वैसे एक बात बताऊं! आपके भले के लिए है। आप भी रहने दें.” शोर से परेशान अपने नन्हें बच्चे को लेकर रिश्तेदार के यहां निकलती हुई साहिनी बोली। भावना (शोर-स्थली पर पहुंचकर)- “आप ज़रा डीजे धीमा कर देंगे?”

उनमें से एक ने कहा, “क्यों जी, हमने इतना पैसा ख़र्च किया है” , मैंने मन में सोचा तो थोड़ा पैसा बैंक्वेट लेने में भी ख़र्च कर देते! “जी हम सबको आवाज़ से असुविधा हो रही है”

“सबको? मुझे तो और कोई नज़र नहीं आता। बाकी सबने मिस्टर इंडिया की घड़ी पहन रखी है क्या!” सब हंसने लगे, मैंने संयम रखते हुए कहा- “आपका सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत अच्छा है। मैं सबका प्रधिनिधित्व लेकर अकेले आई हूं”

“देखिए, ख़ुशी के मौक़े रोज़ रोज़ नहीं आते। कभी-कभी किसी की ख़ातिर थोड़ी सहिष्णु हो जाइए”, मगर इन पचास फ्लैट्स के यहां मिलाकर तो रोज़ ही ख़ुशी के मौक़े आए दिन हो जाते हैं”

“तो आप भी पार्टी करिए, किसने मना किया है? देखिए हमारा देश आज़ाद है, हम गणतंत्र के वासी हैं जहां हर व्यक्ति राजा है”. “मगर आपका शोर जिन पचास फ्लैट्स में गूंज रहा है वो भी तो राजा हैं”, वे- (डांस करते हुए), “क्या कहा? कुछ सुनाई नहीं दिया…” लौटते समय कांति, रीना, साहिनी और पति की व्यंग्यभरी निगाहें पूछ रही थीं? आ गईं जंग जीतकर…

बेटी ने सब देखा-सुना और बोली,”मम्मी, सब तुम्हारा मज़ाक बनाते हैं। मैं तुम्हारा नाम ‘मिस बेचारी’ रख देती हूं”, “नहीं बेटा अगर नाम ही रखना है, तो कर्मण्येवाधिकारस्ते रखो। बेचारे तो मेरा मज़ाक बनानेवाले हैं, जो ख़ुद भी मन ही मन इस शोर पर कुढ़ रहे हैं। मेरे मन में कम-से कम इतना संतोष तो है कि मैंने कुछ नहीं से बेहतर कुछ किया”

“मम्मी, मेरी कर्मण्येवाधिकारस्ते! चलना नहीं है वॉल्यूम धीमा करवाने! आज से मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी।“ बेटी ने झिंझोड़ा, तो मैं उस दिन की स्मृतियों से सुखद आश्चर्य के साथ वापस आई। कौन कहता है कि कुछ नहीं हुआ था। मेरे छोटे-छोटे प्रयासों ने बेटी के मन में कर्मण्येवाधिकारस्ते की नींव डाल दी थी। मेरे अच्छे कर्मों के प्रयासों का *साइड- इफ़ेक्ट* और ये तो शोर कम हो जाने से भी बेहतर परिणाम था, और फिर मैं और मेरी बेटी नई पार्टी के पास शोर कम करने की गुज़ारिश लेकर निकल पड़े…

हथोड़े से पत्थर पर पड़ने वाले सभी प्रहारों का महत्व होता है। परन्तु पत्थर जब अंत मे टूटता है तो मात्र उसी चोट के योगदान की प्रशंसा होती है। आप सब भी बस निरन्तर, निस्वार्थ, सत्कर्म तथा हिन्दू हित कार्यो को करते जाइये, ईश्वर कहाँ क्या बदलाव करेगा उनकी इच्छा। भूल होना “प्रकृत्ति” है मान लेना “संस्कृति” है और उसे सुधार लेना “प्रगति” है केवल अहंकार ही ऐसी दौड़ है जिसमें जीतने वाला सब कुछ हार जाता है।

जय श्री राम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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