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दाम्पत्य प्याररूपी खटपट

#दाम्पत्य प्याररूपी खटपट #प्यार #जय श्रीराम

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बात उन दिनों की है, जब हमारी शादी के 2 साल हो गए थे और हम पतिपत्नी दोनों आपस में लड़ते बहुत थे। वह हमें उकसाती बहुत थी और मैं बात को खींचता बहुत था। हालांकि हम दोनों एकदूसरे को बहुत प्यार करते थे और एकदूसरे का बहुत खयाल भी रखते थे। इसी वजह से हमारी आपस में बनती बहुत थी। लेकिन सारा दिन हमलोग लड़ते ही रहते थे और एकदूसरे की टांग खींचते ही रहते थे।

लोगों को हमारे प्यार का पता नहीं, बस हमारे बीच जो झगङे होते थे उसी का पता है। लेकिन कहते हैं न कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते, वही हाल हुआ हमारे प्यार का और हम पकड़े गए।

एक दिन की बात है। मैं सुबह बहुत लेट से उठा था और मुझे औफिस जाना था। मैं जल्दी-जल्दी तैयार हुआ। इधर मेरी पत्नी डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगाई हुई थी और मुझे खाने पर बुला रही थी। मैं ने कहा कि आज बहुत लेट हो गया है, आज नाश्ता नहीं कर पाऊंगा और दोपहर का लंच भी मत देना। आज समय नहीं मिलेगा खाने का। इतना सुनते ही मेरी पत्नी झल्लाने लगी और बोलने लगी कि आप की तो रोज की आदत है ऐसा करने की। कब सवेरे उठते ही ठीक से नाश्ता करते हो और आराम से औफिस जाते हो। हमेशा हड़बड़ी रहती है तुम्हें। मैं रोज सबेरे उठ कर आप के लिए नाश्ता बनाती हूं, लंच तैयार करती हूं। फिर नहाधो कर आप के लिए नाश्ता परोसती हूं।

मेरी पत्नी हमेशा यही करती थी। मुझे खिला कर ही वह खाती थी और तभी उस के दिल को सुकून मिलता था। लेकिन आज मेरे पास वक्त बहुत कम था, इसलिए मैं ने साफ मना कर दिया। इस पर वह बोली,”मैं कुछ नहीं सुनती। रोज-रोज बस एक ही बहाना। अब से मैं सवेरे उठूंगी नहीं और न ही आप के लिए कुछ काम करूंगी,” इतना सुनते ही मेरे भी कान खड़े हो गए और मैं भी झल्ला उठा,”कौन बोलता है तुम्हें मेरे लिए सवेरे उठने… जाओ आराम करो और अब से मेरे लिए कोई काम मत करना। मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं है। मैं औफिस जा रहा हूं, मेरे बदले तुम सारा खाना खा लेना।”

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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