मेरे मकान की चारदीवारी कुछ नीची है । घर के ठीक सामने चलने वाली सड़क के बीचों बीच डिवाइडर है । जिस पर अक्सर रात के वक्त कुछ सड़क पर रहने वाले अपना बसेरा बना लेते हैं । घर के बाहरी बरामदे में मेरे पापा ने डंब केन के पौधे लगा रखे हैं । इन पौधों का हरा हरा रंग व बड़ी-बड़ी पत्तियां वास्तव में बहुत ही खूबसूरत हैं। इन पौधो को देख आने जाने वालों को भी बहुत अच्छा लगता है। पर यह पौंधे हैं बहुत नाजुक । थोड़ी सी सर्दी से इन के पत्ते मुरझा के पीले पड़ जाते हैं । इसलिए पापा जाड़ों में इन गमलों को खुले से उठाकर अंदर बरामदे में दीवार के पास सजा देते हैं । फिर रात को चारों ओर से चादरों से इन पौंधों को ढक देते हैं ताकि इनको ठंड से बचाया जा सके ।
उस दिन जब मेरी नींद खुली तो मैंने देखा कि पापा जोर जोर से घर के नौकर को डांट रहे हैं। पता चला था कि रात को हमारे नौकर काली ने पौधों को ढका नहीं था । अब वो चादर भी वहाँ पर नहीं थी । पापा बार बार पूछ रहे थे कि आखिर वह चादर गई कहां ?
वह काली कुछ बोल नहीं रहा था। चुपचाप खड़ा था । तभी मेरी नजर सड़क पर सोयी हुयी बुढ़िया पर पड़ी। जो हमारी चादर ओढ़े थी।
मैंने पापा से कहा- “पापा, वो देखिये?
“पापा चादर को वहाँ देखकर गुस्से में भर आये और दहाड़े -” ये क्या है काली ?
“काली ने सर झुका कर का कहा -“मालिक, आज मेरी माँ नहीं है । इसलिए शायद मैं यह सब काम कर रहा हूँ। वह भी शायद किसी की माँ है यदि ठंड से मर जाएगी तो शायद उसके बच्चे भी इसी प्रकार अनाथ हो जायेंगे। इसीलिए मैंने शायद गलती कर दी और रात को पौधों को ढकने की जगह उस बुढ़िया के ऊपर चादर डाल दी । मालिक, अब कभी ऐसी गलती नहीं होगी।” पापा का गुस्सा एकाएक शांत हो गया । उनकी आँखे नम हो गयी उन्होंने काली को गले लगाते हुए कहा -“बेटा तुममें ये परोपकार की भावना है, तुम तो मुझसे भी ज्यादा समझदार हो। तुमने बिलकुल ठीक किया बुढ़िया अम्मा को चादर ओढ़ाकर, उनकी जान ज्यादा कीमती है ।
दोस्तों, परोपकार के महत्व की बात करे तो ,परोपकार के जैसा न तो कोई पुन्य है, ना कोई धर्म । इस दुनिया में हर इंसान को परोपकार करना चाहिए यह जरुरी नहीं है कि हम अपना घर-परिवार त्याग के परोपकार में ही लग जाये, पर जिससे जितना हो सके उसे उतना ही सही पर जरूरतमंद लोगो की हमेशा मदद करे ।
नित नेम याद करो शिव जी परमात्मा को
जय श्रीराम
परोपकार सरीस धर्म ना भाई
जय श्री राम