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भगवान् का विनिमय प्रस्ताव (Exchange offer)

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भगवान् का विनिमय प्रस्ताव (Exchange offer)

एक बार एक दुखी भक्त अपने ईश्वर से शिकायत कर रहा था।
आप मेरा ख्याल नहीं रखते ,मै आपका इतना बड़ा भक्त हूँ। आपकी सेवा करता हूँ। रात-दिन आपका स्मरण करता हूँ। फिर भी मेरी जिंदगी में ही सबसे ज्यादा दुःख क्यों?परेशानियों का अम्बार लगा हुआ है। एक ख़तम होती नहीं कि दूसरी मुसीबत तैयार रहती है। दूसरो कि तो आप सुनते हो। उन्हें तो हर ख़ुशी देते हो। देखो आप ने सभी को सारे सुख दिए हैं, मगर मेरे हिस्से में केवल दुःख ही दिए।

फिर भगवान् की आवाज उसे अपने अंतर्मन में सुनाई दी, ऐसा नहीं है बेटा ! सबके अपने-अपने दुःख -परेशानिया है। अपने कर्मो के अनुसार हर एक को उसका फल प्राप्त होता है। यह मात्र तुम्हारी गलतफहमी है।

लेकिन नहीं। भक्त है कि सुनने को राजी ही नहीं।

आखिर अपने इस नादान भक्त को समझा -समझा कर थक चुके भगवान् ने एक उपाय निकाला

वे बोले। चलो ठीक है मै तुम्हे एक अवसर और देता हूँ, अपनी किस्मत बदलने का।

यह देखो यहाँ पर एक बड़ा सा , पुराना पेड़ है। इस पर सभी ने अपने -अपने दुःख-दर्द और तमाम परेशानियों, तकलीफे, दरिद्रता, बीमारियाँ , तनाव, चिंता आदि सब एक पोटली में बाँध कर उस पेड़ पर लटका दिए है।

जिसे भी जो कुछ भी दुःख हो , वो वहा जाए और अपनी समस्त परेशानियों की पोटली बना कर उस पेड़ पर टांग देता है। तुम भी ऐसा ही करो , इस से तुम्हारी समस्या का हल हो जाएगा।

भक्त तो खुशी के मारे उछल पडा। धन्य है प्रभुजी आप तो। अभी जाता हूँ मै।

तभी प्रभु बोले, लेकिन मेरी एक छोटी सी शर्त है।

” कैसी शर्त भगवन ?”

“तुम जब अपने सारे दुखो की , परेशानियों की पोटली बना कर उस पर टांग चुके होंगे तब उस पेड़ पर पहले से लटकी हुई किसी भी पोटली को तुम्हे अपने साथ लेकर आना होगा। तुम्हारे लिए ..”

भक्त को थोड़ा अजीब लगा लेकिन उसने सोचा चलो ठीक है। फिर उसने अपनी सारी समस्याओं की एक पोटली बना कर पेड़ पर टांग दी। चलो एक काम तो हो गया अब मुझे जीवन में कोई चिंता नहीं। लेकिन प्रभुजी ने कहा था की एक पोटली जाते समय साथ ले जाना।

ठीक है। कौनसी वाली लू …यह छोटी वाली ठीक रहेगी। दुसरे ही क्षण उसे ख्याल आया मगर पता नहीं इसमे क्या है। चलो वो वाली ले लेता हूँ। अरे बाप रे! मगर इसमे कोई गंभीर बिमारी निकली तो।

नहीं नहीं ..अच्छा यह वाली लेता हूँ। मगर पता नहीं यह किसकी है और इसमे क्या क्या दुःख है।”

हे भगवान् इतना कन्फ्यूजन। वो बहुत परेशान हो गया सच में ” बंद मुट्ठी लाख की ..खुल गयी तो ख़ाक की।

जब तक पता नहीं है की दूसरो की पोटलियों में क्या दुःख -परेशानियां , चिंता मुसीबतें है.. तब तक तो ठीक लग रहा था। मगर यदि इनमे अपने से भी ज्यादा दुःख निकले तो।

हे भगवान् …कहाँ हो!?

भगवान् बोले ” क्यों क्या हुआ ? पसंद आये वो उठा लो …” ” नहीं प्रभु क्षमा कर दो .. नादान था जो खुद को सबसे दुखी समझ रहा था ..यहाँ तो मेरे जैसे अनगिनत है , और मुझे यह भी नहीं पता की उनका दुःख -चिंता क्या है ….मुझे खुद की परेशानियों , समस्याए कम से कम मालुम तो है …, नहीं अब मै निराश नहीं होउंगा …सभी के अपने -अपने दुःख है , मै भी अपनी चिंताओं -परेशानियों का साहस से मुकाबला करूंगा , उनका सामना करूंगा न की उनसे भागूंगा .।

धन्यवाद प्रभु , आप जब मेरे साथ है , तो हर शक्ति मेरे साथ है।

भगवान् ने कहा यह विनिमय प्रस्ताव सदा के लिए सबके लिए खुला है..!!

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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