राम
यह दो अक्षर किसी समय में ईश्वरीय तत्व के लिए कहे जाते थे। वह ईश्वरीय तत्व जो जीवन-निर्जीव और मन-बुद्धि-विचारों से लेकर अब तक अज्ञात सभी चीजों और बातों का मूल है। इनके अलावा भी जो कुछ है उनका भी। आज की वैज्ञानिक भाषा में इसे बेसिक एलिमेंट कहा गया है – 11वां डायमेंशन माना गया है।
बहरहाल, अगर सिर्फ अब तक की ज्ञात बातों को जोड़ते हुए देखें तो दशरथपुत्र राम भी कुछ ऐसे ही हैं – ईश्वरीय तत्व से – जिन्होंने अपने गुरु-पिता-माता से लेकर ऋषि-मुनियों, अपनी प्रजा और जंगली-आदिवासियों तक से समान प्रेम रखा। हालांकि, साथ ही दुनिया की मर्यादाओं को भी निभाते रहे। निर्लोभी हो, अपने भाई को राजा बनते देख खुश हुए, प्रेम से गले लगाते रहे। एक पत्नी व्रत का आजीवन पालन किया।
मनुष्यों के अतिरिक्त वन्य जीवों के साथ भी न केवल बिना संकोच रहे बल्कि उन्हें अपनी शक्ति दी और उनकी शक्ति का उपयोग भी किया।
जीवन से इतर उन्होंने पत्थर की अहिल्या को शाप मुक्त किया तो उन्हीं पत्थरों से सागर पर सेतु बनवाया।
यहां यदि अनादर्श को भी विचारें तो, सीता परित्याग के बारे में जितना मैंने पढ़ा है, यह प्रसंग ना तो मूल वाल्मीकि रामायण में है ना ही मूल रामचरित मानस में। थोड़ा सा सोचते हैं कि जो स्त्री अपने पति के साथ के लिए सब कुछ छोड़ जंगल में चली जाए, क्या वह पति, आदर्श होकर भी, उन्हें अकेला जंगल में छोड़ सकता है? यह राम के व्यक्तित्व में नहीं है। राम होने का अर्थ परित्याग है ही नहीं, बल्कि योग है।
श्रीराम एक दोस्त भी रहे तो महान राजा भी। लंका की बड़ी सेना पर जीत पाने वाले शूरवीर ने सहज ही समय आने पर जल समाधि (आत्महत्या नहीं) भी ले ली।
सब कुछ तो कहना मेरे लिए सम्भव नहीं। उनके कार्यों व जीवन का प्रमाण उन पर कहा गया मूल साहित्य है ही। फिर भी, जो नहीं मानते, उनके लिए भी, प्रमाणों पर नहीं बल्कि गुणों पर चर्चा करें तो, क्या ये सभी गुण आज के अनुसार भी ज़रूरी नहीं हैं?
मुझे लगता है – हाँ है।
ज़रूरी नहीं कि श्रीराम सभी के आराध्य हों, लेकिन उनके अच्छे गुणों को हम सभी को अपनाना तो चाहिए ही।
इसके अलावा उनके जीवन से एक और महत्वपूर्ण बात कि कुछ ऐसा अलग करने की भी सोचें कि आपके जन्मदिन की बधाई दुनिया के लोग एक-दूसरे को दें।

जय श्री राम
Jai Shree Ram
Thanks Subhash Sir… Jai Shree Ram